मनुष्य का शरीर एक मशीन के जैसा है. इस मशीन को चलाने के लिए शक्ति खर्च होती है. साधारण सा काम करने में और छोटी से छोटी बात सोचने में शक्ति खर्च होती है. बोलने-चलने, सांस लेने में भी शक्ति की आवश्यकता होती है. बिना शारीरिक शक्ति के कोई कार्य नहीं हो सकता.
हमारा शरीर दिन-रात मशीन की भांति बाहर-भीतर कार्य करता रहता है और उससे हमारी शक्ति का ह्रास होता है. उसी क्षय की पूर्ति के लिए आहार ग्रहण करना पड़ता है. आहार जो हम खाते हैं, पच कर हमारे शरीर में शक्ति का सृजन करता है जिससे हम चलते-फिरते, बोलते-चालते और अन्य कार्य करते हैं.
हमारा आहार कार्बन-योगों से बनता है, जिसे हम हरे पौधों से लेते हैं अथवा मांसाहारी प्राणी, प्राणियों के मांस आदि से प्राप्त करते हैं. वनस्पति हमारे लिए कार्बन-योगों को (वायु से carbon-dioxide) पैदा करते हैं. मनुष्य फेफड़ों द्वारा साँस खिचता है और इस प्रकार oxygen हमारे शरीर में प्रवेश करके कार्बन-योगों द्वारा शक्ति पैदा करता है.