तरह-तरह के फूलों को एक धागे में गूंथकर एक माला बनाई जाती है। एक धागा फूलों की अनेकता को एकता में बदल देता है। इसी को ‘विविधता में एकता‘ कहते हैं।
हमारे देश में विविधता अनेक रूपों में देखने को मिलती है। यहाँ अनेक प्रांत हैं। प्रत्येक प्रांत की अपनी भाषा, अपनी वेषभूषा, अपने रीति-रिवाज और अपना खान-पान है। विविध प्रांतों की सामाजिक प्रथाओं में बहुत अंतर है। फिर भी ये सारे प्रांत भारतीय संस्कृति के धागे में गुंथे हुए हैं।
भारत की अलग-अलग भाषाओं के प्रमुख धर्मग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान की एक-सी धारा बहती है। वेद, रामायण, महाभारत पुराण आदि भारत के प्राचीन ग्रंथ हैं। इन्ही के आधार पर सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य का सृजन हुआ है। हिंदी में तुलसीदास की तो दक्षिण में कंबन की रामायण प्रसिद्ध है। कबीर, नानक, मीरा आदि संतो के पद देश के सभी भागों में गाए जाते हैं। महात्मा गाँधी, गुरूदेव रवींद्रनाथ भारतीय जैसे महान व्यक्तियों पर सारा देश समान रूप से गर्व करता है।
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, राम, कृष्ण, शिव, गणेश आदि देवी-देवता देश के सभी भागों में एक जैसी श्रद्धा से पूजे जाते हैं। देश के सभी तीर्थों की एक जैसी महिमा है। कुंभ जैसे मेलों में देश के सभी प्रांतों के लोग शामिल होते हैं। होली, दीवाली, रक्षा-बंधन, नवरात्रि जैसे त्यौहार संपूर्ण भारत में मनाए जाते हैं।
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भारतीय संगीत में देश के सभी भागों के संगीत का समावेश होता है। पंजाब का भांगड़ा, गुजरात का गरबा, ओडिशा के ओडिसी, आंध्र की कुचिपुड़ी तथा केरल की कथकली आदि नृत्य सरे देश में लोकप्रिय हैं। भारत में सभी प्रांत एक ही केंद्रीय सत्ता के अधीन हैं। सारे देश का एक संविधान, एक कानून, एक राष्ट्रध्वज तथा एक राष्ट्र गीत है। भारतीय सेना में सभी प्रांतों के सैनिक हैं। क्रिकेट, फुटबॉल जैसे खेलों की राष्ट्रीय टीम में अलग-अलग प्रांतों के खिलाड़ी चुने जाते हैं।
कभी-कभी अलग-अलग प्रांतों के बीच छोटे-छोटे मतभेद दिखाई पड़ते हैं। इसके बावजूद राष्ट्रीय आपदाओं के समय सारा देश मिलकर उनका सामना करता है। अलग-अलग अखबार, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के अलग-अलग केंद्र आदि भी मूल रूप से राष्ट्रीय एकता को ही प्रकट करते हैं।
इस प्रकार भारत में सर्वत्र विविधता में एकता का दर्शन होता है।
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