लालची बिलाव – पंचतंत्र की कहानी: panchtantr ki kahani, story of panchatantra in Hindi: नंदनवन में एक वृक्ष के खोखर में एक कलंज नाम का गौरैया रहता था। एक बार भोजन की तलाश में कलंज अपने साथियों के साथ उड़कर कहीं दूर चला गया और दो दिन तक वापस नहीं लौटा।
उसी बीच दुष्टा नाम का एक खरगोश कहीं से कूदता-फांदता उस पेड़ के पास आ पहुँचा। उसे रहने के लिए स्थान की तलाश थी।
उसने देखा कि वृक्ष का एक खोखर खाली पड़ा है। तो वह उसी में घुस गया और उसने अपना घर बना लिया।
तीसरे दिन।
जब कलंज वापस लौटा तो देखा कि उसके घर पर खरगोश ने अधिकार कर लिया है। उसने खरगोश से कहा – ‘ मेरे घर में बिना पूछे घुसकर तुमने अच्छा नहीं किया, चलो जल्दी बाहर निकलो। ‘
खरगोश ने अकड़ते हुए कहा – ‘ जाओ जाओ अपना रास्ता नापो, यह घर मेरे है। बड़ा आया है मुझे निकालने वाला। दो दिन से यह खोखर खाली पड़ा था, इसलिए मैंने अपना घर यहाँ बनाया है, तुम अपने लिए कोई ओर जगह ढूंढ लो। ‘
कलंज ने कहा – ‘ देखो भाई खरगोश ये तो सरासर अन्याय है। यह घर मेरा है। मैं झगड़ा नहीं करना चाहता। चलो किसी धर्मशास्त्री से न्याय करवा लेते हैं। ‘
खरगोश को इसमें कोई बुराई दिखाई न दी। उसने कुछ क्षण सोचने के बाद कहा – ‘ यह बात है तो चलो। ‘
दोनों किसी धर्मशास्त्री की खोज में चल पड़े।
एक जंगली बिलाव ने उन्हें कुछ दूर से ही आपस में बातें करते हुए सुन लिया।
उनके झगड़े की बात सुनकर उसने एक चाल चलने की सोची। वह उनके रास्ते में एक साधू की समाधी लगाकर बैठ गया।
‘ यह जीवन तो क्षण भर का है। यह संसार माया-मोह का झूठा जाल है। बस धर्म ही मनुष्य को बचा सकता है। ‘
खरगोश इस तपस्वी बिलाव की ज्ञान भरी बातों का बहुत प्रभाव पड़ा। वह बोला – ‘ चलो कलंज। इस तपस्वी से अपना न्याय करवायें।
कलंज ने कहा – ‘ मुझे बिलाव पर भरोसा नहीं है, जो भी पूछना है दूर से पूछो। पास में जाने का खतरा है। ‘
खरगोश ने दूर से ही कहा – ‘ महात्मा जी, हम दोनों का एक मुक़दमा है। आप ही न्याय कीजिए। हममें जो भी झूठा सिद्ध हो, उसे आप खा लीजिएगा। ‘
विलाव ने कहा – ‘ राम-राम, ऐसी बातें क्यों करते हो भाई ? हिंसा करना तो मैंने कब का छोड़ दिया है। अब तो मुझे एक ही लगन है कि अपने पुराने पापों का प्रायश्चित करके भवसागर से पार उतर जाऊं। मैं तुम्हारा न्याय अवश्य करूँगा, पर ठीक से सुन नहीं पाता। बुढा जो हो गया हूं। मेरे बच्चों, तुम निडर होकर मेरे पास आओ। ‘
बिलाव का चिकनी-चुपड़ी बातों का जादू खरगोश और गौरैया पर चल गया और खरगोश कूद कर तथा गौरैया उड़कर ढोंगी तपस्वी बिलाव के पास आ पहुंचे।
पालक झपकते ही बिलाव ने गौरैया को अपने पंजे में और खरगोश को अपने पैने दांतों में जकड़कर मार डाला और उन्हें खा गया।
पाखंडी अधर्न्मात्माओं और नीच विचारों के चक्कर में पड़ने वालों की वही दशा होती है, जो बिलाव की बातों में आकर खरगोश और गौरैया की हुई।