साधारण गणित में एक और एक दो हो सकते है लेकिन गुस्से के गणित में तो एक और एक ग्यारह ही होता है। मैंने भी गुस्सा किया है और उसके दुष्परिणाम देखे है।
आपने भी अपने गुस्से के दुष्परिणाम ज़रुर ही देखे होंगे। हम सभी फायदे वाला व्यापार करना चाहते है, कोई मुझे बता सकता है कि क्रोध करने के क्या-क्या लाभ है? क्या बिल्डर, क्या व्यापारी, क्या अफसर, क्या चपरासी, क्या विद्यार्थी, क्या गृहस्थी, बच्चा या बुढा, जवान या मज़दूर कोई नहीं कह सकता कि क्रोध करने के क्या-क्या लाभ है। फिर भी क्रोध किए चले जाते है। क्यों ?
अगर आप अपने-आप को शांति के रास्ते पर ले आते है तो जीवन में संत कहलायेंगे और अशांति आपको जीतेजी नरक में धकेल देगी। वेश बदलकर संत तो बना जा सकता है, शांत होना वास्तविक संतत्व का प्राण है। महाराज तो बन सकते है, पर संत होना महान बात है। आप घर में रहकर शांत रह सके तो यह किसी संत होने से कम नहीं है।
हम केवल अरिहंत की पूजा न करते रहें। खुद अरिहंत होने की पहल करें। अरिहंत यानि शत्रु का हनन करने वाला। क्रोध हमारा शत्रु है। हम शत्रु पर विजय प्राप्त करें। क्रोध पर विजय प्राप्त करना सबसे बड़ी विजय है।
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जहाँ प्रेम और क्षमा, वहां क्रोध नहीं होता
मैं प्रेम का पथिक हूं, प्रेम से जीता हूं, प्रेम को जीता हूं। प्रेम में, शांति में ही जीवन का स्वर्ग और जीवन का सुख नजर आता है। भाई सबको ! चार दिन जीना है और कब किसको चला जाना है, कहा नहीं जा सकता। याद वे ही रखे जायेंगे जो याद रखे जाने जैसे कर्म और व्यवहार करेंगे।
प्रेम, शांति, सम्मान और विनम्रता का परिणाम है स्वर्ग। क्रोध, घमंड, ईर्ष्या, नफरत का परिणाम है नरक। खुद ही खुद का मूल्यांकन कर लो कि हमारे जीवन का परिणाम स्वर्ग है या नरक।
एक ओर नरक, एक ओर स्वर्ग। जिनसे गलती हो जाए, उन्हें माफ़ कर दो, यह है स्वर्गिक व्यवहार। इसी तरह खुद से गलती हो जाए इसके लिए माफ़ी मांग लो, यह है स्वर्गिक बर्ताव।
याद रखो, स्वर्ग उनके लिए है जो गलती करने वालों को माफ़ कर देता है, और स्वर्ग उनके लिए है जो दूसरों पर रहम करता है। ईश्वर उन्ही से प्यार करते है जो दयालु और क्षमाशील होते है।
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शुभ सोचों, शुभ बोलो, शुभ देखो, शुभ सुनो, शुभ करो – ये पांच बातें ही जीवन की पंचामृत बन जानी चाहिए।
मैंने गुस्से के दुष्परिणाम और प्रेम के शुभ परिणाम देखें है। इसलिए कहता हूं गुस्सा मत करो, प्राणि-मात्र से प्रेम करो। सभी से प्रेम करना जीवन जीने की बेहतरीन कला है। प्रेम स्वंय अहिंसा और अहिंसा का मतलब है अनंत प्रेम।
ऐसा मत सोचों कि थोड़ा सा गुस्सा कर लिया तो क्या हो गया। क्रोध तभी करें जब आपके पास अन्य कोई विकल्प न बचे, क्योंकि क्रोध तो ब्रम्हास्त्र है इसे तभी उपयोग में लाए जब आपके सभी अस्त्र विफल हो जाएँ।
क्रोध तीन प्रकार का होता है – एक पानी में उठे बुलबुले की तरह कि अभी गुस्सा आया और अभी खत्म हो गया। जैसे पानी में लकीर खींचें तो कितनी देर टिकती है, बस कुछ लोगों का गुस्सा ऐसा ही होता है। दूसरे प्रकार के लोगों का गुस्सा मिट्टी में पड़ी दरारों की तरह होता है कि जब तक प्रेम या मिठास का पानी न मिले दरार रहती है फिर सब एक समान।
उनका गुस्सा प्रेम की बरसात होती है, मीठे बोलों की शीतलता से ठंडा हो जाता है। और तीसरे प्रकार के लोगों का गुस्सा पत्थर में पड़ी दरार की तरह होता है। चाहे जितना प्रयत्न कर लो पत्थर जल्दी जुड़ते नहीं। ठीक इसी प्रकार इन लोगों का गुस्सा कम नहीं हो पाता। और कुछ लोग कमठ की तरह है जो जन्मों-जन्मों तक क्रोध की धारा को साथ लिये रहते है।
गुस्सा हमेशा दुसरो की ग़लतियों पर आता है, खुद की ग़लतियों पर नहीं। मेरे प्रभु याद रखो जो मसला सुई से हल हो जाए उसके लिए तलवार मत चलाइए। क्योंकि अभी-अभी जिस बात पर गुस्सा आया है उसके साथ चार दिन पुरानी बातें और भी जुड़ जाती है, गढ़े मुर्दे उखाड़ने लगते है, दूसरी बात गुस्सा हमेशा कमजोर पर आता है।
पिता अपने बच्चों पर, मालिक नौकर पर, बच्चे खिलौनों पर गुस्सा करते दिखाई देते है। जो किसी दूसरे पर गुस्सा नहीं कर सकते वह निरीह मूक जानवरों पर क्रोध करते देखे जा सकते है। गुस्सा हमेशा नीचे की ओर बहता है और प्रेम हमेशा ऊपर की ओर।
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क्रोध का परिणाम बड़ा घटक होता है। एक बार क्रोध करने से हमारी एक हजार ज्ञान कोशिकाएं जलकर नष्ट हो जाती है। जो बच्चे दिन में दस दफा गुस्सा करते है उनकी दस हजार ज्ञान-कोशिकाएं नष्ट हो जाती है। इसलिए मेरे बच्चों सदाबहार प्रसन्न रहो। सहनशील बनो। शांत रहो। अगर आप चाहते है कि आपकी स्मरण-शक्ति प्रखर बनी रहे तो संकल्प कीजिए कि गुस्सा नहीं करेंगे, नहीं करेंगे, नहीं करेंगे।
आप गुस्सा करेंगे तो हृदय कमजोर होगा, पाचन क्रिया बिगड़ेगी, दिमागी क्षमता कमजोर होगी जाएगी। रक्त चाप असंतुलित होगा, भूख नहीं लगेगी, नींद भी नहीं आएगी।
क्रोध का अन्य दुष्परिणाम है – खुद पर नियंत्रण समाप्त हो जाना। क्रोध के करण आपसी संबंधों में खटास आ जाती है। पल भर का क्रोध पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है। क्रोध के करण कैरियर भी प्रभावित होता है। जो क्रोध नहीं करता वह एक समय भोजन करके भी ऊर्जावान बना रहता है। उसका खुद पर नियंत्रण बना रहता है।
मैं अनुशासन प्रिय हूं पर गुस्सा नहीं करता। जब भी व्यक्ति गुस्सा करता है, मुर्खता को ही दोहराता है। गुस्से में व्यक्ति अपशब्दों का प्रयोग भी करता है। क्रोध आने पर सारी समझदारी एक तरफ हो जाती है और मुँह से तेज आवाज़ में अपमानित करने वाली बातें झरने लगती है। हमारे द्वारा किया गया थोड़ा सा गुस्सा हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों को समाप्त कर देता है। इसीलिए कहता हूं जो कार्य सुई से हो जाए, उसके लिए तलवार का उपयोग न करें।
क्रोध को जीवन का पहला और कारगर फार्मूला है कि जो काम प्रेम भरे शब्दों से पूरा हो सकता है, उसके लिए तेश क्यों खाया जाए। अपने मातहत को, बेटे को, बहु को, नौकर को तभी डांटे-डपटे जब इसके अलावा कोई रास्ता ही न रहे।
नौकर को अगर छोड़ना भी हो तो गुस्से में न छोड़े। वह आपके लिए घातक बन सकता है। अपने गुस्से में आकर उसे घर से या दुकान से निकाला है, निश्चय ही इसका गुस्सा उसे भी है। वह अपना गुस्सा आप पर निकाल सकता है। आप पर कोई जानलेवा हमला भी कर सकता है। इसलिए सावधान ! जब भी किसी नौकर को छोड़े जाते समय उसे इनाम भी दे और धन्यवाद भी कि इतने समय तक तुमने हमारे सेवा की।
यही नहीं, भाई-भाई भी अगर कभी अलग हो, पिता-पुत्र अलग हो, तब भी प्रेम के साथ एक दूसरे से विदा हों, ताकि अलग होने के बाद एक दूसरे से मिलने के काबिल तो रहो। जरुरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद भी ली जा सके। गुस्से में अगर अलग हो बैठे, तो उपेक्षित बेटा-बहु दूसरों के सामने आपकी बदनामी ही करेंगे। व्यक्ति की समझदारी इसी में है कि वह विपरीत वातावरण बन जाने पर किसी तरह विजय पाता है।
अब हम देखें कि क्रोध आए पर कैसे इसका निवारण किया जाए – जब भी गुस्सा आए तो इसे कल पर टालने की आदत डालें। यदि गुस्से को हाथों -हाथ प्रकट कर दिया तो वह बात नहीं होगी, आग का लावा होगा। व्यक्ति, व्यक्ति नहीं होता, ज्वालामुखी बन जाता है। गुस्सा प्रकट हुआ यानी ज्वालामुखी फट पड़ा।
गुस्सा आ गया, कोई बात नहीं, थोड़ा धीरज करें। धीरज से बड़ा कोई मित्र नहीं है। विपरीत वातावरण बन जाने पर धैर्य की परीक्षा होती है। क्रोध का इलाज है धैर्य। दस मिनट का धीरज आपके दस घंटे की शांति को बर्बाद होने से बचा सकती है। धीरज छोड़ा कि गए काम से। फिर तो क्रोध का पूरा खानदान आ धमकेगा। आपकी शांति, आपकी समझदारी, आपके रिश्ते, आपके आनंद-सबको चूहों की तरह कुतर जाएगा।
आप तो गुस्सा छोडिये, सुख से जीवन का आनंद लीजिए। क्रोध मुक्ति का एक और मंत्र लीजिए – क्रोध का वातावरण बनने पर उस स्थान से अलग हो जाएँ। कमरे में आ जाएँ, कुछ अच्छा सा संगीत सुन लें, नहीं तो सफाई करलें मतलब की अपना ध्यान बटा दें। अगर ऐसा नहीं कर सकते यानि कि वहां से हटना मुमकिन नहीं है तो ठंडा पानी पि लें।
जब दूध में उफान आता है तो पानी के छीटे डालकर उफान को रोक देते है या गैस बंद कर देते है। ठीक इसी तरह क्रोध का तापमान कम करने के लिए ठंडा पानी पि लीजिए, वह भी ठंडा हो जायगा। आप ठंडा होकर देखिए तो सही, अगला ठंडा बर्फ हो जाएगा।
एक बात और यदि हमारे कारण किसी को गुस्सा आ जाए तो सॉरी कहना न भूलें। जरा भी देर न लगाएँ, तुरंत सॉरी कह दें। सॉरी शब्द बड़ा पावरफुल है। अगले के टेम्प्रेचर को एक ही क्षण में फिफ्टी परसेंट कर देती है। जीवन में तीन शब्द प्लीज, थैंकयू और सॉरी – सदा इस्तेमाल कीजिए। आप जितनी बार प्लीज कहेंगे सामने वाला उतना ही pleased होगा, धन्यवाद देते ही वह कृतज्ञ हो जायेगा और सॉरी कहने से क्रोध के वातावरण में तत्काल नमी का संचार हो जाएगा।
जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहें, फासले कम करें और प्रेम करना सीखें। ताने मरना छोड़े। याद रखें माचिस की तीली के सिर होता है, पर दिमाग नहीं। अत: वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है। पर हमारे पास सिर भी है दिमाग भी, फिर हम क्यों जरा-जरा से बात पर सुलग उठते है। हमें तो अपनी बुद्धि का उपयोग करना है और विवेकपूर्वक अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना है।
हम सब लोग अपनी वीरता को पहचानें और शांति-पथ के पुजारी बने। मेरी समझ से आज की बाद आप अपने क्रोध को अपने काबू में रखेंगे। जीवन में, वाणी में, व्यवहार में मिठास घोलेंगे। दुनिया में शिव-शंकर वही कहलाते है, जो दुसरो के हिस्सों का जहर खुद पि जाया करते है और बदले में लोगों को अपनी दिव्यता और मिठास लोटाया करते है।