समय का पहिया बड़ी तेजी से घूमता रहता है। उसी के साथ जीवन में भी परिवर्तन होता रहता है। इसलिए यहाँ किसी के सब दिन समान नहीं होते। वनों-बागों में भी वसंत की बाहर आती है, तो कभी पतझड़ की मायूसी। कभी धरती ग्रीष्म के ताप से विकल होती है, तो कभी बारिश में शांति और ठंडक प्रदान करती है।
कभी पूनम का चाँद धरती पर अपनी शोभा बिखेरता है, तो कभी अमावस की रात का अंधेरा छा जाता है। इस तरह प्रकृति का बदलता हुआ रूप यहीं सिद्ध करता है कि सब दिन एक समान नहीं होते।
इतिहास बताता है कि दुनिया में समय-समय पर बड़े-बड़े राजवंशों का उदय हुआ। वर्षों तक उनके शासन चले। पर दिन बदले और वे राजवंश तथा उनके सिंहासन मिट्टी में मिल गए। सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त, अकबर आदि के अपार वैभव की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं।
चित्तोड़ के महाराणा प्रताप को भी जंगलों में भटकना पड़ा था और उनके परिवार को घास की रोटियां खानी पड़ी थी। यूनान, मिस्र, रोम आदि देशों को महान सभ्यताएं आज समाप्त हो गई हैं। सदियों तक गुलाम रहने वाला भारत स्वतंत्र होकर आज प्रगति की राह पर निरंतर आगे बढ़ रहा है।
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राजनीति के क्षेत्र में भी परिवर्तन होता रहा है। एक पार्टी बरसों तक शासन करती है, लेकिन दिन फिरते ही सत्ता की सुंदरी उससे रूठ जाती है। बरसों तक कुर्सी का स्वाद लेने वाले मंत्री को कभी जेल की हवा खानी पड़ती है। कभी अयोग्य उम्मीदवार भी चुनाव जीत जाता है और कभी प्रतिष्ठित नेता को भी चुनाव में अपनी जमानत गंवानी पड़ती है।
लोकप्रियता के शिखरों पर बैठी फ़िल्मी हस्तियां अचानक गुमनामी के अंधेरे में खो जाती है। इसी तरह नौसिखिये कलाकार, अभिनेता और व्यवसायी समय का साथ मिलने पर देखते ही देखते प्रसिद्ध होकर समृद्धि के शिखर पर बैठे दिखाई देते हैं। दोनों के फेर को ही भाग्य का खेल या दुर्भाग्य कहते हैं। श्री कृष्ण की कृपा से निर्धन सुदामा के दिन बदल गए थे। दिल्ली सम्राट बहादुरशाह जफ़र को असहाय दशा में रंगून की जेल में मृत्यु का वरण करना पड़ा था।
अच्छे दिनों का बुरे दिनों में बदलना और बुरे दिनों का अच्छे दिनों में बदलना मनुष्य को बहुत कुछ सिखा देता है। आपत्तिकाल में हमें घबराना नहीं चाहिए और सुख के दिनों में इतराना नहीं चाहिए। सब दिन समान नहीं होते।