मेरे प्रिय शिक्षक (अध्यापक)- निबंध

मेरे प्रिय शिक्षक (teacher)- निबंध, Hindi essay: अपने छात्रजीवन में मुझे अनेक शिक्षकों से स्नेह तथा मार्गदर्शन मिला है, लेकिन इन सबमें सुरेंद्र शर्मा मेरे प्रिय अध्यापक रहे हैं। सचमुच, उनके जैसा अपार ज्ञान, असीम स्नेह और प्रभावशाली व्यक्तित्व बहुत कम अध्यापकों में पाया जाता है।

शर्माजी का कद लंबा और रंग गोरा है। उनकी आँखें चमकीली हैं। उनकी आवाज गंभीर, स्पष्ट और प्रभावशाली है। उनका शरीर फुर्तीला और स्वस्थ है। वे हमेशा तेज चाल से चलते हैं। वे प्राय: सफ़ेद धोती-कुर्ता अथवा सफारी सूट पहनते हैं।

आज के कई अध्यापक अपने पद को केवल अर्थप्राप्ति का साधन मानते हैं और विद्यार्थियों के सामने किताबों के पन्ने पलट देने को ही पढ़ाना समझते हैं! मानो सच्चे ज्ञान-दान और चरित्र-निर्माण से उन्हें कोई मतलब ही न हो! लेकिन शर्माजी के बारे में यह बात नहीं है। वे अध्यापक-पद के गौरव और उसकी जिम्मेदारी को भली-भाँती समझते हैं और अपने कर्तव्यों का पूर्ण रूप से निर्वाह करते हैं।

शर्माजी विद्वान व्यक्ति हैं। उनका ज्ञानभंडार अथाह है। विज्ञानं, गणित और समाजशात्र में भी उनकी रूचि कम नहीं हैं। अंग्रेजी व्याकरण वे इस प्रकार समझाते हैं कि सारी बातें कक्षा में ही कंठस्थ हो जाती है।हिंदी भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार है। कोई भी विद्यार्थी अपनी शंका, बिना किसी भय और हिचकिचाहट के उनके सामने रख सकता है और उसका उचित समाधान प्राप्त कर सकता है।

ये भी जाने- निबंध कैसे लिखते हैं? How to write an essay?

शर्माजी खेल-कूद में भी बहुत रूचि लेते हैं। वे विद्यार्थियों के साथ खेल में भाग लेते हैं। नाटक, चर्चा-गोष्ठी, चित्र-प्रतियोगिता, निबंध-प्रतियोगिता आदि में वे विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हैं। हमारे विद्यालय का ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं, जिसमें शर्माजी का योगदान न हो।

शर्माजी विद्यालय को एक परिवार मानते हैं। सभी विद्यार्थियों को उनका प्यार मिलता है। उन्हें क्रोध होते कभी नहीं देखा, फिर भी अनुशासन के वे बहुत हिमायती हैं। पढाई में कमजोर छात्रों पर उनकी ममतामयी दृष्टि रहती है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण क्षत्रों को वे स्नेह से ढाढसबाँधते हैं। सचमुच, सभी छात्र उनमें एक पिता के वात्सल्य का दर्शन करते हैं।

शर्माजी निरभिमानी हैं। घमंड तो उन्हें छू तक नहीं गया है। उनके चेहरे से सदा प्रसन्नता और आत्मीयता झलकती है। उनके रहन-सहन और वेशभूषा से सादगी प्रकट होती है। झूठ, लोभ, रिश्वत, ईर्ष्या आदि बुराइयों से तो वे कोसों दूर हैं। यदि ऐसे शर्माजी मेरे प्रिय अध्यापक हों, तो इसमें आश्चर्य ही क्या।

निचे दिए गए निबंध भी जरुर पढ़ें

Scroll to Top