महिलाओं, लड़कियों के लिए कानूनी अधिकार क्या है? Mahilao ladkiyo ke kanuni adhikar kya hai? आज भी हमारे देश में बड़ी तादाद में ऐसी महिलाएं है जो पढ़ी-लिखी तो है, पर अपने अधिकारों से अंजान है। उन्हे पता ही नही की देश के संविधान और कानून व्यवस्था में खास उनके लिए कितने कानून बनाए गये है। कानूनी अधिकारों की जानकारी ना सिर्फ महिलाओ को सक्षम बनाती है, बल्कि अन्याय के खिलाफ मजबूती से खड़े होने का हौसला और विश्वास भी देती है। यहां हमने महिलाओ को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने की एक छोटी सी पहल की है।
सांविधानिक अधिकार – Constitutional right
1. सामान अधिकार प्राप्त है
भारतीय नागरिक होने के कारण महिलाओं को वो सारे अधिकार प्राप्त है, जो बाकी नागरिकों को मिले है। इसके अलावा महिलाओ के सर्वागीं विकास के लिए कुछ खास कानून भी बनाए गये है, ताकि महिलाएं किसी भी हाल में पुरुष से पीछे ना रहे।
2. हमारे संविधान में महिलाओ के मूलभूत अधिकारों को विशेष स्थान दिया गया है। इसमें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ अधिकार, स्त्री-पुरुष का भेदभाव किए बिना महिलाओ को समान वेतन का अधिकार, अच्छी सेहत का अधिकार आदि दिए गये है।
3. महिलाओ को काबिल और सशक्त बनाने के लिए सरकार ने समय-समय पर संविधान में कई संशोधन किए। महिलाओ को एक बेहतर public platform देने के लिए पंचायत और सभी municipal governments में महिलाओ की भागीदारी को 1/3 से बढ़कर 50% कर दिया गया है। पंचायत और local self government level पर अब पुरुषों के मुकाबले महिलाओ की भागीदारी आधी होगी।
4. वोट देने का अधिकार
हमारे देश में महिलाओ को वोट देने का अधिकार है। यह अधिकार उन्हे तभी मिल गया, जब हमारा देश आजाद हुआ, जबकि अमेरिका जैसे विकसित देश में भी महिलाओ को वोट देने का अधिकार पाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी।
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5. पिता कि संपत्ति में अधिकार
समानता के अधिकार को व्यवहारिकता का अमलीजामा पहनने के लिए सरकार ने कुछ अहम कदम उठाए। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में बहुत ही जरूरी बदलाव करते हुए सभी बेटियो को पिता की संपत्ति में बेटों के समान अधिकार दिया। अब हर बेटी का अपने पिता की संपत्ति में उतना ही अधिकार है, जितना उसके भाई का।
6. रखरखाव और गुजारा भत्ता पाने का अधिकार
महिलाओ को आर्थिक मदद का अधिकार मिला है। अपने पति से अलग रहनेवाली और तलाक महिलाओ को अपने भरण-पोषण के लिए किसी पर निर्भर ना होना पड़े, इसलिए उन्हे अच्छी तरह से अपनी देखभाल करने के लिए पति से रखरखाव और गुजारा भत्ता मिलती है।
इसके अलावा बुजुर्ग माँ के देखभाल की ज़िम्मेदारी उसके बेटे की है। अगर बेटा अपनी ज़िम्मेंदारियो को पूरा करने से मुकरता है, तो माँ अपने भरण-पोषण के लिए कानून की मदद ले सकती है। पहले maintenance की अधिकतम धन राशि मात्र 500 रुपए थी, जिसे 2001 में बढ़ाकर पति-पत्नी की हैसियत के अनुसार कर दिया गया है।
7. गर्भावस्था में छुट्टी का अधिकार
Maternity Leave (गर्भावस्था में छुट्टी) महिलाओ का मूलभूत अधिकार है। सरकारी महिला कर्मचारियों के लिए सरकार ने maternity leave की अवधि को 135 दीनो से बढ़कर 180 दिन कर दिया है। इसके अलावा वे बच्चे की परवरिश के लिए child care की 2 साल की salutary leave (जिसमें आपको सॅलरी मिलती रहेगी) भी ले सकती है, जो वो अपनी इच्छानुसार बच्चे की 18 साल की उम्र तक कभी भी ले सकती है।
8. कार्यस्थल पर अनुकूल माहौल मिलने का अधिकार
महिलाओ की जरूरत के अनुसार कार्यस्थल का माहौल प्रदान करना हर नियोक्ता कि जिम्मेदारी है। उनकी मूलभूत जरूरतों, जैसे – hygienic toilet, साफ-सुथरा माहौल आदि। नियोक्ता पर महिलाओ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइड्लाइन जारी की है, ताकि महिलाओ को किसी भी प्रकार के शोषण से बचाया जा सके।
9. सेने में स्ताही commission
महिलाओ को हमेशा से कमजोर वर्ग का हिस्सा माना जाता रहा है, इसलिए उन्हे देश की सेना में स्थाही commission ना देकर महज कुछ साल ही उनकी सेवाएँ ली जाती थी। सेना में स्थाही commission की खातिर सेना की कई महिलाओ ने एक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके फलस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओ के हक में फ़ैसला सुनते हुए उन्हे सेना में स्थाई commission दिया।
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10. पति कि संपत्ति में अधिकार
वर्ष 2012 में central cabinet ने Marriage Bill Law, 2010 में संशोधन कर महिलाओ को पति की संपत्ति में समान अधिकार दिया है, पर अभी तक संसद में यह बिल पारित नही हुआ है। अगर संसद में भी यह बिल पारित हो गया, तो तलाक के बाद पत्नी पति के संपत्ति में बराबर की हक़दार होगी।
11। सक्षम महिलाओं को भी maintenance मिलेगा
Delhi High Court ने 2011 में एक जरूरी फ़ैसला सुनाया। इसके तहत पति से अलग रह रही working women भी maintenance की हकदार होगी। अब तक maintenance सिर्फ उन्ही महिलाओ को मिलता था, जो अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नही थी।
12. घरेलू हिंसा का कानून
महिलाओ को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून बना। यह कानून घर में होनेवाले किसी भी प्रकार की क्रूरता और अत्याचार के खिलाफ महिलाओ को सुरक्षा प्रदान करता है। अगर महिला घरेलू हिंशा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराए, तो पुलिस इसके खिलाफ जल्दी और सख़्त कार्यवाही करती है।
13. Live In Relationship में पत्नी जैसा सम्मान और maintenance मिलेगा
Live In Relationship में रहनेवाली महिलाओ को भी पत्नी के समान दर्जा देते हुए उसे maintenance का अधिकार मिला है। शादी के बगैर अपने साथी के साथ Live In में रहनेवाली महिलाओ को पत्नी की तरह सम्मान और maintenance का पूरा अधिकार है।
पुलिस संबंधित कानून
14. महिला गिरफ़्तारी का भी है एक समय
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सुर्युदय के पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता। पुलिस की यह ज़िम्मेदारी है कि महिलाओ से जुड़ी हर कार्यवाही दिन में ही किसी महिला कॉन्स्टेबल की मौजूदगी में पूरी करे। अगर किसी जरूरी केस में सूर्यास्त के बाद महिला की गिरफ्तारी करनी है, तो पुलिस के पास मजिस्ट्रेट द्वारा जारी स्पेशल लिखित वॉरेंट होना अनिवार्य है।
15. अकेले में अपना बयान दर्ज कराने का अधिकार
अगर किसी महिला को सबके सामने अपना बयान दर्ज करने में असहजता महसूस हो रही है तो उसे पूरा अधिकार है कि वो सिर्फ एक police officer और एक lady constable के सामने अपना बयान दर्ज करवाए। इससे महिला की privacy भी बनी रहती है और उससे जुड़ी कोई भी जानकारी सार्वजनिक नही होती।
16. शोषण की शिकार महिला कभी भी अपना बयान दर्द करवा सकती है
बलात्कार या यौन उत्पीड़न की शिकार महिला के लिए फिर दर्ज करने की कोई समय सीमा नही है, वो कभी भी इसकी FIR दर्ज करवा सकती है। ऐसे मामलो में अक्सर पीड़ित की मानसिक स्थिति ऐसी नही होती की वो तुरंत पुलिस को इस बारे में सूचित कर सके या फिर कई बार परिवार और लोकलाज के बारे में सोचकर महिलाएं तुरंत को कठोर कदम उठाने से हिचकिचाती है। इसलिए महिलाओ की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हे यह अधिकार दिया गया है।
17. Post के जरिये अपना बयान दर्ज करवाना
महिलाओ को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर वो police station जाकर कोई FIR दर्ज नही करवाना चाहती, तो पोस्ट के ज़रिए Head Police Officer को अपराध की सूचना देकर फिर दर्ज करवा सकती है। सूचना मिलते ही Head Police Officer उस इलाक़े के SHO को FIR दर्ज करने और जुर्म की तहकीकात के आदेश भेज देता है। इसके बाद पुलिस जल्द से जल्द victim के घर पहूचकर उसका बयान दर्ज करती है।
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18. शोषण की शिकार महिला को पुलिस स्टेशन नही बुलाया जा सकता
शोषण की शिकार किसी भी महिला को यह अधिकार है की पूछताछ के लिए उसे पुलिस स्टेशन नही बुलाया जा सकता। Victim का बयान दर्ज करने के लिए पुलिस को उसके घर जाना होगा और एक महिला कॉन्स्टेबल और उसके परिवारवालों की उपस्थिति में उसका बयान दर्ज करना होगा।
19. Victim महिला का नाम और पहचान गुप्त रखा जायेगा
किसी भी मामले में victim महिला या उससे जुड़ी महिला की पहचान को गुप्त रखा जाएगा। ना पुलिस ना ही मीडिया उसका नाम सार्वजनिक कर सकते है। अगर कोई महिला का नाम लीक कर देता है, तो उसे Indian Penal Code (IPC) के तहत सज़ा दी जाएगी।
20. फांसी कि सजा पाने वाली महिलाओं को जमानत मिल सकती है
अगर किसी महिला को ऐसे अपराध में गिरफ्तार किया गया है, जिसके लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है और जमानत नही मिलती, फिर भी महिला होने के कारण कोर्ट उसे जमानत पर रिहा कर सकती है।
21. महिला कांस्टेबल के बिना न तो तलासी होगा और न ही गिरफ़्तारी
किसी भी महिला की तलाशी लेने का अधिकार किसी महिला कॉन्स्टेबल को ही है। इसके अलावा किसी भी मामले में गिरफ्तारी के वक़्त पुलिस ऑफीसर के साथ किसी महिला कॉन्स्टेबल का होना अनिवार्य है। अगर ऐसा नही है, तो महिला तलाशी देने से और गिरफ्तारी से इनकार कर सकती है।
22. मेडिकल जांच कि मांग
महिलाओ को ये अधिकार दिया गया है की किसी भी कारण अगर उनकी गिरफ्तारी होती है, तो वे अपने मेडिकल checkup के तुरंत माँग कर सकती है और मेडिकल checkup के लिए लेडी डॉक्टर का होना जरूरी है। अगर किसी कारण लेडी डॉक्टर मौजूद नही है, तो वो अपने साथ किसी महिला कॉन्स्टेबल की माँग कर सकती है, जो जांच के दौरान उसके साथ रहेगी।
23. शादी के बाद surname न बदलने का अधिकार
बहुत सी महिलाओ को लगता है की शादी के बाद नाम या surname बदलने के कारण उनकी पहचान पहचान जाती है। ऐसे में महिलाओ को अब पूरा अधिकार है कि वे शादी के पहले वाला surname बनाए रख सकती है।
24. Free legal ad का अधिकार
महिलाओ को free legal ad का अधिकार है। अगर कोई महिला अपने उपर हुए अत्याचार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ना चाहती है, तो यह उस राज्य की ज़िम्मेदारी है की वो उस महिला को वॅकिल मुहैया कराए उसकी कानूनी लड़ाई में मदद करे।
25. गर्भवती महिला को विशेष अधिकार
प्रेग्नेंट लेडी को विशेष अधिकार प्राप्त है की वे किसी भी medical treatment या medicine के लिए माना कर सकती है। अगर वे चाहे तो cesarean, anesthesia या pain medicine के लिए माना कर सकती है।
महिलाओं/लड़कियों के लिए क़ानूनी अधिकार
अपराध की दुनिया में बड़ी लड़कियों से लेकर भोली-भाली लड़कियों तक के अपहरण के किस्से सुनने में आते हैं। शादी का लालच देकर, बहला-फुसला कर या लड़कियों के अपहरण की वारदातें भी देखी जाती हैं।
ऐसी वारदातों के साथ एक दूसरा घोर अपराध भी जुड़ा है। यह अपराध है – लड़कियों का व्यापार। उनका बेचा और खरीदा जाना। इस तरह लड़कियों का अनैतिक व्यापार होता है। यह व्यापार देश की सीमा के बाहर दूसरे देशों तक फैला है। इसमें से ज्यादातर लड़कियां वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दी जाती है।
कानून के तहत लड़कियों का अपहरण और अनैतिक व्यापार घोर अपराध है। इस तरह के अपराध का जाल बहुत बड़ा और फैला हुआ होता है। कई बार इसमें बड़े-बड़े अपराधी गिरोह काम करते हैं।
ऐसा अपराध हो तो क्या करें?
ऐसा हादसा होने पर police में सूचना देना जरूरी है। Police को report लिखवाते समय कई आवश्यक सूचनाएं देना जरूरी होता है, जैसे – बच्ची या लड़की का नाम, उम्र, वारदात के समय वह क्या पहने थी, उसकी शक्ल-सूरत, रंग कैसा है, आदि। क्या कोई खास निशान है। जिससे उसकी पहचान हो सके, उसकी भी जानकारी दें। इसके अलावा अपना नाम, पता आदि भी लिखवाना जरूरी है।
लड़कियों का अपहरण करके उन्हें अनैतिक वेश्यावृत्ति के लिए बेचना घोर अपराध है। इसके लिए विशेष कानून बना है। इसे ‘अनैतिक व्यापार अधिनियम, 1956 कहते हैं। इस कानून के तहत अपराधी को तिन से चौदह साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
Police में शिकायत दर्ज करवाने के बाद कानूनी छानबीन होती है। याद रहे, इन अपराधों की जांच-पड़ताल के लिए सरकार ने खास विभाग बनाए हैं। इन संस्थाएं इस विभाग के साथ जुड़ी हैं। Police विभाग के साथ खुफ़िया महकमा भी छानबीन करता है। इन हादसों की जांच-पड़ताल में ये सभी महकमे और संस्थाएं साथ मिलकर काम करती हैं।
कई लड़कियों को इन हादसों से बचाया गया है। ऐसी स्थिति में उन्हें हिफाज़त से उनके घर पहुंचाया जाता है। उन्हें नया जीवन शुरू करने में मदद दी जाती है।
ऐसे हादसों से निपटने के लिए police विभाग और जांच कर रहे संबंधित सभी महकमों को पूरा सहयोग दें। अपराधी को पकड़वाना, और कानून के तहत उसे सजा दिलवाना भी आपका कर्तव्य है।
महिलाओं/लड़कियों के लिए विशेष कानून
लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और छींटाकशी
दोस्तों के बीच या परिवार में हंसी-मजाक के साथ छेड़छाड़ और छींटाकशी एक आम बात है। यह लोगों के बीच स्नेह भाव की निशानी है।
मगर कई बार यह साधारण-सी बात एक जुर्म बन जाती है। शहरों-कस्बों में लड़कियों या महिलाओं को अक्सर घर से दूर सफर करना पड़ता है। लड़कियां पढ़ने, नौकरी करने अथवा घर के कामकाज के लिए पैदल या bus में सफर करतीं हिं। आपने सुना होगा या देखा होगा कि bus stand पर, पैदल चलती लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और छींटाकशी होती है। समाज में जो बुरी नजर या सोच वाले लड़के या पुरुष हैं, वे ऐसी हरकतें करते हैं।
Bus में सफ़र करती students या काम पर जाने वाली महिलाओं के साथ भी अभद्र व्यवहार होता है। यह कई प्रकार से होता है – बुरी या गंदी नजर से देखना, अभद्र शब्दों का प्रयोग, शारीरिक छेड़छाड़ आदि।
छेड़छाड़ और छींटाकशी क़ानूनन अपराध है। इसकी शिकायत थाने में दर्ज करवाने पर कानूनी छानबीन होती है। अपराधी को जुर्माना या कैद की सजा हो सकती है।
यौन-उत्पीड़न की समस्या : कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा कैसे मिले?
नौकरी करने की जगह office भी हो सकता है और factory भी। दिहाड़ी पर मजदूर कामगार महिला के लिए यह पत्थर तोड़ने, ईट ढोने या इसी तरह के किसी अन्य काम की जगह हो सकती है। इन सभी काम करने की जगहों पर महिला कामगारों की हिफाजत का जिम्मा मालिक का होता है।
देखा गया है कि इन सभी जगहों पर अक्सर महिला कामगार ‘यौन उत्पीड़न’ का शिकार होती हैं। समाज और इज्जत के डर से ज्यादातर महिलाएं इन अत्याचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठा पाती।
आपको जानकार तसल्ली होगी कि पिछले कुछ सालों में कामगार महिलाओं ने इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई है। ऐसी कई घटनाओं की कानून के तहत सरकारी जांच हुई है।
लेकिन दुःख की बात है कि ऐसी कई घटनाओं में अपराध साबित नहीं हो पाता। लिंग के आधार पर office में महिलाओं पर मालिक या office के अन्य पुरुष सदस्य दबाव डालते हैं। उन्हें कई तरह से परेशान किया जाता है। जैसे –
- काम में ग़लतियाँ निकालना, नौकरी में बढ़ोतरी को रोक देना।
- शब्दों के द्वारा सबके सामने उसे नीचा दिखाना, धमकियां देना।
- अकेले में जबरदस्ती करना। उसके अंग या कपड़ों पर अभद्र नजर डालना।
- उनका transfer करवा देना। मालिक से गलत शिकायत करना। उसके चरित्र को बुरा बताना।
अधिकतर महिलाएं बदनामी के दर से या गरीबी की वजह से ये जुल्म सहती रहती हैं। पर कुछ महिलाओं ने कानून के तहत इसकी शिकायत की है। अदालती जांच भी हुई है। इन सारी वारदातों के कारण सबसे ऊँची अदालत ने यौन-उत्पीड़न की समस्या के हल के लिए दिशा-निर्देश दिए हैं। लेकिन पहले देखें की यौन-उत्पीड़न है क्या?
यौन-उत्पीड़न कब माना जाएगा?
- कामगार महिला या office में कार्यरत कर्मचारी की तरफ मालिक या साथ काम करने वाला पुरुष अनचाही नजरों से देखे। इस तरह के हावभाव प्रकट करे जिससे औरत के सम्मान को आघात लगे।
- ऐसी भाषा या शब्दों का उपयोग करे जिसमें यौन-संबंधी मतलब छिपा हो।
- अकेले में शारीरिक संबंध के लिए मजबूर किया जाए।
- ऐसा न करने पर उसे तरह-तरह की धमकियां दे। यह मुंहजबानी भी हो सकती है और लिख कर भी।
- अगर इस तरह की हरकतें नौकरी करने की जगह पर हों और मालिक खुद अपनी ताकत का जोर देखाए।
- ये सभी हरकतें ‘यौन-उत्पीड़न’ के तहत मानी जाएंगी। सबसे ऊँची अदालत ने कानून के तहत यह तय किया है।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश
इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय ने हर काम करने वाली संस्था को निर्देश जारी किया है। इसके अंतर्गत कामगार महिलाओं की हिफाजत के लिए संस्था को यौन-उत्पीड़न के हादसे और इससे संबंधित शिकायत की छानबीन के लिए एक खास समिति या ‘cell’ बनाना होगा।
इस समिति में वकील, शहर के जाने-माने लोग और महिला सदस्य होंगे। इसके अलावा संबंधित संस्था के लोग भी होंगे। महिला वकील का होना जरूरी है। इस समिति की नेता भी महिला होगी।
अगर यौन-उत्पीड़न की कोई घटना होती है, तो इस समिति में उसकी शिकायत दर्ज होगी। समिति उसकी छानबीन करेगी।
जरूरत पड़ने पर एक खास जाँच उप-समिति का गठन भी किया जा सकता है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तहत यह उप-समिति बनाई जा सकती है। छानबीन अदालती नियमों के तहत होगी।
यह उप-समिति अपराध होने की स्थिति में उस पर निर्णय देगी। इसके लिए सजा की सिफारिश करेगी। दोषी संस्था की इस सजा के आदेश का पालन करना होगा।
ऐसी घटनाओं के अंतर्गत अपराधी को नौकरी से निकाला जा सकता है। अदालती कार्यवाही होने पर जुर्माना और जेल की सजा भी हो सकती है।
शहरों में काफी अधिक संख्या में लड़कियां और महिलाएं नौकरी पर जाती है। उनके लिए अदालत का यह निर्देश बहुत महत्वपूर्ण है।
दहेज : रीति-रिवाजों से घिरी समस्या
दहेज शादी के रीति-रिवाजों से जुड़ी एक प्रथा है। कानून के तहत दहेज देने और लेने दोनों पर पाबंदी है। यह दहेज निषेध अधिनियम 1961 का कानून है।
इस अधिनियम के बावजूद रीति-रीवाज की आड़ में दहेज को लेकर महिलाओं पर कई अत्याचार होते हैं।
दहेज का मसला समय के साथ बढ़ता ही गया है। समाज में अधिक पढ़े-लिखे लड़के का दहेज दाम भी अधिक होता है। लड़की के माँ-बाप बेटी की खुशी और सुख के लिए अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज देने की कोशिश करते हैं। कर्ज में डूब कर भी वे इस मांग को पूरा करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि हैसियत से अधिक दहेज देना भी गैर-कानूनी है?
दहेज का लालच कई मामलों में पति और उसके घरवालों को अंधा बना देता है। शादी से लेकर शादी के बाद तक लड़की पर कई तरह के जुल्म होते हैं। ताने, मार-पिटाई, तरह-तरह की फरमाइशें आदि नवविवाहित स्त्रियों के साथ होने वाली आम घटनाएँ हैं। यहाँ तक कि बहू को जला कर मार डालने के किस्से भी देखने-सुनने को मिलते हिं। कई बार लड़की को इतना सताया जाता है कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है।
दहेज-निषेध कानून क्या कहता है?
- दहेज मांगना, देना-लेना, उसमें मदद करना कानूनन जुर्म है।
- इसकी आड़ में बहू पर किया गया जुर्म घोर अपराध है।
- इन अपराधों की शिकायत होने पर सख्त कानूनी छानबीन होती है।
- इन अपराधों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का नियम है। इनमें कई सालों की कैद और जुर्माना हो सकता है।
याद रहे
कानून का यह नियम बहुत कम लोगों को मालूम है कि दहेज में दी गई हर एक वस्तु पर लड़की का अधिकार होता है। ससुराल वाले इसे अपने अधिकार में नहीं रख सकते। बहू अपनी मरजी से जिसे चाहे उसे दे सकती है।
शादी में दिए गए उपहार
परिवार वालों के लिए शादी एकखुशी का मौका होता है। दोस्त और मित्रों के लिए भी यह खुशी मनाने का मौका है। दूल्हा-दुल्हन को हर तरफ से उपहार मिलते हैं। ये उपहार दहेज में नहीं मिले जाते।
उपहारों के लिए भी कुछ नियम बनाए गए है। इन्हें जानना जरूरी है।
दुल्हन और दूल्हे को अलग-अलग उपहार मिलते हैं और साथ भी। कानून का नियम कहता है कि शादी के समय इन उपहारों की list या सूची बनाई बनाई जाए। इस सूची पर वर-वधू दोनों के दस्तखत ले लिए जाएं।
इन उपहारों पर वर-वधू का बराबर हक होगा।
दहेज से जुड़े अपराध और सजा कानून
- दहेज के अपराधों के संबंध में नीचे लिखे गए तिन कानून / नियम हैं।
- भारतीय दंड नियम 1860 : इस नियम से हमें दहेज से जुड़े दंडनीय अपराधों के बारे में जानकारी मिलती है।
- भारतीय गवाह अधिनियम 1872 : यह कानून हमें कई अहम जानकारी देता है। अपराध को साबित करने के लिए जिन बातों का ध्यान रखना होगा उससे जुड़ी जानकारी हमें मिलती है। इस नियम में सबूतों और गवाही के बारे में जानकारी दी गई है।
- सजा की कार्यवाही का नियम, 1973 : इस नियम से हमें कानूनी कार्यवाही और सजा के नियमों के बारे में जानकारी मिलती है।
दहेज के अपराध की सजा
दहेज से जुड़े अपराधों के लिए पति और उसके घरवालों को कैद और जुर्माना दोनों की सजा हो सकती है। जिस तरह का उत्पीड़न होगा उसके मुताबिक सजा होगी। दहेज लेने और देने के लिए 5 वर्ष की कैद और करीब 15000/- रू जुर्माना हो सकता है।
अगर लड़की की हत्या की गई है या उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है टी जिम्मेदार लोगों पर हत्या का मुकदमा चलेगा। मौत के दोनों कारणों में पुलिस में रपट लिखवाना जरूरी है।
दहेज माँगने की सजा छह महीने कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है।
पुलिस की कार्यवाही
- थाने में हत्या या आत्महत्या की रपट दर्ज होगी। जिस पर शक है उसके खिलाफ बयान लिखवाना होगा।
- पुलिस इसकी सूचना magistrate को देगी। इसके बाद घटना की छानबीन होगी।
- पुलिस घटना स्थान पर जाकर जांच करेगी।
- घटना की जगह पर मौजूद लोगों की उपस्थिति में रपट लिखी जाएगी। उनसे भी पूछताछ होगी।
- पुलिस लाश की डाक्टरी जांच की कार्यवाही करेगी।
- लिखित रपट के दस्तावेज़ पर पुलिस और जानने वाले लोगों के दस्तख़त होंगे।
- जांच के बाद रपट जिले के बड़े अफसर (ज़िलाधीश) को भेजी जाएगी।
- आगे की कार्यवाही ज़िलाधीश तय करेंगे।
- सबूत और गवाही के आधार पर खास ध्यान दिया जाएगा।
- इस घोर अपराध के लिए कड़ी कैद की सजा का नियम है। यह कैद 14 साल तक की हो सकती है। इसका अपराधी जुर्माना देकर नहीं छुट सकता।
दहेज-उत्पीड़न की शिकायत कौन दर्ज करवा सकता है?
- जो महिला दहेज-मांग से पीड़ित हो।
- पुलिस अफ़सर जानकारी मिलने पर शिकायत दर्ज कर सकता है।
- समाजसेवी संस्थाएं पीड़ित महिला की तरफ से शिकायत लिखवा सकती है।
- महिलाओं की समस्या से जुड़े सरकारी विभाग यह काम कर सकते है।
- लड़की के माता-पिता या अन्य मित्र सदस्य यह कर सकते हैं।