Kabir das Ji Ke Dohe और उनके मतलब

कबीरदस जी के दोहे और उनके मतलब – Kabir das Ji Ke Dohe, Kabir ke dohe, Kabir das ji ke famous dohe, Kabir das quotes, Kabir das suvichar

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय l
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ll

अर्थात- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी यह कहना कहते है कि मनुष्य हमेशा दूसरों में ही बुराई खोजते हैं, पर कभी अपने अंदर की बुराई नहीं देखते। अगर वे अपने अंदर की बुराई देखें तो उनसे बुरा कोई नहीं होगा।

साई इतना दीजिए, जाँ में कुटुम्ब समाय l
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ll

अर्थात – है प्रभु हमें इतना समर्थ दीजिए कि हम अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। मैं भूखा न रहूँ और हमारे घर आने वाले अतिथि भी भूखा मेरे घर से न जाए।

लुट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट l
पीछे फिर पछताओगे, प्राण जाही जब छुट ll

अर्थात – इस दोहे के जरिए कबीरदास जी यह कहना चाहते हैं कि जिंदगी बहुत छोटी है, जब तक जिंदगी है उस परमात्मा को याद कर लो। बाद में कब उन्हें याद करोगे, क्या मृत्यु के बाद ?

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय l
जो सुख में सुमिरन करें, दुख कहे हो होय ll

अर्थात – इस दोहे के संत कबीरदास जी ने बहुत बड़ी बात कही है, जो सही भी है वे कहते है कि जब दुख आता है तो सभी प्रभु को याद करते हैं। मगर कोई ऐसा नहीं जो सुख के वक़्त प्रभु को या करते है। अगर हम सुख के समय प्रभु को याद करेंगे तो दुख कभी नहीं आयेगा।

माला फेरत जुग भया, फिर न मन का फेर l
कर का मन का डर दें, मन का मनका फेर ll

अर्थात – जिंदगी भर माला फेरा फिर भी मन का मैल साफ न कर सके, कबीर जी ऐसे व्यक्ति को सलाह देते हैं कि हाथ की माला को फेरना छोड़कर पहले अपने मन की मोतियों को फेरो या बदलो।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर l
पंक्षी को छाया नहीं, फल लगे अति दूर ll

अर्थात – जिस प्रकार खजूर के पेड़ किसी को छाया नहीं दे सकती,और इसका फल इतनी दूर होता है जो पहुँच से बहार है। उसी प्रकार बड़े लोग अपने ओहदे से बड़े नहीं होते उनका कर्म ही उनको बड़ा बनाता है।

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