प्रकृति का संदेश है कि आप उसके नियमों का पालन करके सुख और प्रसन्नता के उपहार को प्राप्त करें। प्रकृति आपको कहती है कि मैंने संघर्ष करने के लिए ही आपको सुदृदता प्रदान की है। उसी ने आपको कठिनाइयाँ सहने का सामर्थ्य दिया है ताकि आप ऐसा चरित्र बनाए, जिससे आपको महान उद्देश्यों की प्राप्ति हो। मानव जाती के लिए उद्धम व परिश्रम खुद एक गुरु है। परिश्रम बहुत अच्छा अध्यापक (teacher) है।
वह हमें पुरानी रूढ़ियों के वातावरण से निकालकर सृष्टि की विशाल पाठशाला में लाता है, जहाँ मनुष्य नैतिकता के संपर्क में आता है। कर्मठ व्यक्ति के मार्ग में आने वाले काँटे परिश्रम की रगड़ से घिस-घिसकर सुकोमल हो जाते हैं और उसके चरित्र में एक चमक आ जाती है।
मन में ऐसी आदत डालिए कि वह इस बात का दवा करे कि ‘ वह काम मेरा है ‘ निश्चित रूप से मैं इसमें सफल हो जाऊँगा। मैं अपनी इच्छा को अवश्य ही कार्यान्वित कर दूँगा। ‘ सुदृढ़ प्रतिज्ञा से अथाह शक्ति होती है। आपको चाहिए कि उत्साहपूर्वक अपने ‘ अहं ‘ को प्रकट करें। बताइए कि आप यह करेंगे।
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एक बार निर्णय करके अपनी शक्ति उसमें लगा देंगे तो सफलता पाने से आपको कौन रोक सकेगा। आत्मसंबोधन और चिंतन के समय आपको अपने निश्चय पर अटल रहने के पुन: प्रण करना होगा, अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करके अपनी शक्तियों व क्षमताओं पर विचार करना होगा और अधिक सामर्थ्य प्राप्त करने की ओर ध्यान देना होगा। इस प्रकार के आत्मसंबोधन से बुरी आदत खुद छुट जाएगी और आप उस पर काबू प् लेंगे। बस, देरी तभी तक है, जब तक आप इसे जड़-मूल से नष्ट करने का बीड़ा नहीं उठा लेते।
आप आज ही निश्चयपूर्वक काम को इस रफ्तार से करें कि आपकी योग्यता के संबंध में किसी को संदेह न रहे। अपने मन से कहिए – ‘ काम न करने से तो अच्छा है कि काम किया जाए, भले ही उसमे कुछ भूलें रह जाएँ, क्योंकि मनुष्य बलों से ही सीखता है। ‘ आप जिन परर्थों को प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं उन्हें प्राप्त करने का, उन्हें वश में करने का प्रण कीजिए।
आप जिन गुणों को प्राप्त करना चाहते है, उन्हें प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प कीजिए। अपने मन की सारी शक्तियों को अपने उद्देश्यों की ओर लगा दीजिए। मन की तुच्छ इच्छाओं को दूर हटाकर अपने संपूर्ण विचारों को अपने लक्ष्य पर केन्द्रित कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो यह निश्चय है कि आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।