हमारा कर्तव्य और व्यवहार कैसा होना चाहिए?

हमारा कर्तव्य और व्यवहार कैसा होना चाहिए?

मानव एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी के लिये व्यवहार की महत्ता होती है। व्यवहार का पालन और सूक्ष्म स्वरूप है वाणी। मानव के बोलने से ही उसका परिचय मिल जाता है। इसके बाद आता है व्यवहार। व्यवहार का क्षेत्र विस्तृत होता है और उसे मानवता की कसौटी कहा जा सकता है।

व्यवहार से ही कोई समाज में अपना स्थान बनाता या बिगाड़ता है। अच्छे व्यवहार वाला समाज में अपना श्रेष्ठ स्थान पाता है। इसके विपरीत बुरे व्यवहार वाला अपना नष्ट स्थान बनाता है। सदव्यवहारी प्रशंसा और सम्मान का पात्र बनता है तो दुर्व्यवहार अवमानना और घृणा का पात्र बनता है। अच्छे-बुरे व्यवहार से मानव संत से लेकर शैतान की नाना (different) कोटियों के नाना स्थान पाता है।

हमारा कर्तव्य और व्यवहार कैसा हो

हमारा कर्तव्य और व्यवहार कैसा होना चाहिए?

जितने भी महापुरुष, समर्थ गुरु अथवा संत हुए हैं, उनकी महानता उनके व्यवहार में ही रही है। व्यवहार ही अध्यात्म की सच्ची कसौटी है।

ये भी जाने- व्यवहार क्या है? Behaviour कैसा होना चहिये?

मन की बात बता देना या कोई चमत्कार दिखा देना कोई आध्यात्मिक बात नहीं है। शुद्ध व्यवहार तभी होना आरम्भ हो जाता है जब मन में शुचिता (clearness) आनी शुरू होती है। शुद्ध व्यवहार अपनाना तभी संभव होता है जब मन शुद्ध हो। मन में शुद्धता तभी आती है जब किसी संत का सत्संग मिलता है। सत्संग से जिनका अन्त:करण निर्मल हो जाता है उन्ही से शुद्ध व्यवहार बन पड़ता है। अन्य से संभव नहीं हो पता।

एक बार पांडव एक ब्राह्मण के आग्रह पर एक मृग (deer) का पीछा कर रहे थे। मृग ब्राह्मण का मंथन काष्ठ (churning wood) ले भगा था। पर असल में मंथन काष्ठ मृग के सिंघ से उलझ गया और वह उसे ले भागा था। मृग उनकी आँखों से ओझल हो गया।

पांडव पीछा करते थक गए। उन्हें प्यास भी लगी थी। धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर नकुल सबके लिए पानी लेने निकले। थोड़ी दूर पर उन्हें एक जलाशय मिला। किंतु वह पानी लेने को ज्यों ही आगे बढ़े, उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी। उसमें कहा गया था ‘ पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दो, फिर जल लेना। ‘ नकुल ने उसकी परवाह नहीं की और जल लेने लगा। फल यह हुआ कि जल लेते समय वह निर्जीव होकर भूमि पर गिर  गया।

नकुल के बाद एक-एक कर सहदेव, अर्जुन और भीम भी गए। उनकी भी यही दशा हुई।

अन्त में धर्मराज वहां पहुंचे। उन्होंने भी आकाशवाणी सुनी और उन्हें एक भीमकाय यक्ष दिखाई दिया। उसने कहा ‘ मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना पानी पिने के कारण तुम्हारे भाइयों की यह दशा हुई है। तुमने भी ऐसा किया तो तुम्हारी भी यदि दशा होगी। ‘

युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का यथोचित उत्तर दे दिया। इस पर यक्ष प्रसन्न होकर बोला ‘ आप अपने भाइयों में से किसी एक भाई को जीवित करना चाहो तो उसे मैं जीवित कर सकता हूं। ‘

जरुर पढ़ें- सबके साथ अच्छा व्यवहार करना ही हमारा पहला धर्म है

धर्मराज ने नकुल को जीवित करने की प्राथना की। इस पर यक्ष ने उसका कारण पूछा। धर्मराज ने उत्तर दिया, ‘ मेरे पिता के दो रानियाँ थी – कुंती और माद्री। मैं दोनों को समान मानता हूं। कुंती का पुत्र मैं जीवित हूं। अत: मैंने माद्री के भी पुत्र को जीवित करने की प्राथना की और अर्जुन व भीम का नाम नहीं लिया। ‘ इस सुन्दर धर्मपूर्ण व्यवहार को देखकर यक्ष प्रसन्न हो गया। उसने धर्मराज के चारों भाइयों को जीवित कर दिया।

हमारे अंदर में भी मन, बुद्धि, चित्त आदि सब कुछ मौजूद हैं। इन सबसे हम बड़े अच्छे कार्य कर सकते हैं। किंतु व्यवहार तभी बन पड़ता है जब मन, बुद्धि व चित्त समता में आ जाए। ये समता में तब आते हैं जब इन्हें किन्ही समर्थ गुरु का प्रकाश मिले। जब तक मनुष्य का अन्त:करण शुद्ध नहीं होगा, वह शुद्ध व्यवहार अथवा कर्तव्य -पालन कर ही नहीं सकता चाहे वह साधन भी करता हो।

आगे पढ़ें- अच्छा व्यवहार ही अच्छी सोच लाती है – प्रेरक बातें

Ravi Saw

रवि साव एक पेशेवर blogger हैं! वे एक इलेक्टिकल इंजिनियर थे पर blogging करने की रूचि ने उन्हें acchibaat.com बनाने कि प्रेरणा दी. इस वेबसाइट के जरिये वे रिश्तों कि जानकारी और बारीकियों के बारे में बताते हैं ताकि आपका रिश्ता जीवन भर खुशहाल रहे. साथ में रवि जी इस वेबसाइट पर टेक्निकल से संबंधित जानकारियां भी प्रकाशित करते हैं.

Leave a Reply

This Post Has 3 Comments

  1. Acchi baat

    Thanks for your appreciation…

  2. Maya Manish

    Very nice I am thank full to you

    1. Acchi baat

      thanks