Bhaiya meri kya galti? Bhai ke saath behan ke masum pyar ki khani

Bhaiya meri kya galti? Bhai ke saath behan ke masum pyar ki khani: Door bell बजी तो राखी भाग कर दरवाजे पर पहुँची। वाहा postman था, कोई registry लाया था। राखी के दिल की धड़कनें तेज हो गई। कापते हाथो से registry खोली, तो किसी exam का form निकाला।

आज भी उसे मायूसी हाथ लगी। दिल के किसी कोने में उसे एक आशा सी थी कि शायद इस बार खत का जवाब आ जाए।

रक्षा बंधन आने को था और उसने हमेशा की तरह राखी का रोल्ली लच्छा भैया को एक प्यार भरे खत के साथ पोस्ट कर दिया था। उसे इंतेज़ार था, किसी जवाब खत या money order का, लेकिन पिछले 10 सालो से न तो भैया का कोई money order आया था, ना ही खत।

टेलिफोन पर जब भी वो बात करना चाहती, तो कोई उसकी आवाज़ सुनकर फोन ही काट देता था। Postman के आने से बँधी उमीद की असफलता थी या सालो की इक्कठा हुई भावनाएं, राखी की आखें भर आई।

पति की आवाज़ ने उसे चौंकाया, तो आँसू पोंछकर राखी रोहन को office के लिए “सी-ऑफ” करने गयी।

फिर आल्मिराह से शादी का आल्बम निकाल कर पन्ने पलटने लगी। उसका सारा ध्यान उन्ही तस्वीरों पर था, जहाँ-जहाँ भैया थे।

कितना प्यारा चेहरा था भैया का! शांत और हँसमुख भैया राखी से तिन साल ही बड़े थे। अतीत के सभी पन्ने राखी की सामने घूमने लगे।

तिन पीढ़ियों तक परिवार में कोई लड़की ना होने से राखी बचपन से ही सबकी लाडली थी। भैया तो उस पर जान देते थे।

भैया जितने शांत थे, राखी उतनी ही नटखट। किताबें गायब कर देना, जूते छुपा देना, शेविंग क्रीम की जगह टूथपेस्ट रख देना राखी का रोज का काम था। भैया उसकी सभी शरारतों को सहते, उसकी हर ज़िद्द माना करते। उमर में ख़ास फर्क नहीं होने पर भी उसे बच्चों की तरह रखते।

माँ बताती थी कि भैया तेरे पैदा होने से इतने खुश थे कि उन्होने तेरा  नाम ही “राखी” रख दिया। भैया हर तकलीफ़ में राखी का साथ देते। कभी उसकी तबीयत खराब हो जाती तो पूरा दिन उसके पास बैठा करते थे…।!

रक्षा बंधन का दिन तो “राखी” का ही होता है। सुबह से ही फरमाईस शुरू हो जाती। यह लायो – वो लायो, तब ही राखी बांधुंगी। भैया राखी बंधवाने आगे-पीछे घूमते।

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माँ, बापू जी गुस्सा करते कि भाई ने बहन को सिर पे चढ़ा रखा है, पर उसके नाज़- नखरे उठाने में भैया ने कभी कोई कसर नहीं राखी। कॉलेज तक आते-आते भैया उसके अच्छे दोस्त बन गये थे।

कॉलेज में किसी की हिम्मत ही नई थी कि कोई लड़का आँख उठाकर राखी को देखे। फिर भी ना जाने कब रोहन राखी को अच्छा लगने लगा।

भैया को भी वह यूँ तो पसंद था, पर भैया चाहते थे कि वो पहले अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। राखी की ज़िद के चलते घर में माँ-बाबू जी को भैया ने शादी के लिए मनाया, उसके बाद रोहन की नौकरी लगने से पहले ही दोनो की शादी हो गयी। जीवन अपनी रफ़्तार पकड़ने लगा।

राखी अपने शादी-शुदा जीवन में busy हो गयी और भैया ने बाबू जी का business संभाल लिया। राखी के परिवार में चार लोग थे सूरज और नन्ही पलक।

जब-जब राखी अपने मयके आती तो वो अपने भैया की शादी की बात उठाती रहती। रोहन का काम भी अब धीरे-धीरे सेट होने लगा था कि एक हादसा हो गया। बाबू जी नहीं रहे। बाबू जी के गुजर जाने पर वकील ने वसीयत पढ़कर सुनाई।

उत्तराधिकार नियम के मुताबिक दोनो भाई-बहन में संपति का बराबर बँटवारा बाबू जी ने किया था। राखी से जब संपति में हिस्सा लेने की बात की गयी, तो उसने हाँ कर दी।

इस देश में अक्सर लड़किया संपति लेने से मना कर देती है, वहाँ राखी के इस फ़ैसले ने सभी को चौंकाया तो बहुत, पर किसी ने कुछ कहा नहीं। माँ भैया के साथ ही रही। उनके प्रेम में कोई कमी नहीं आई, पर भैया अचानक बदल से गये।

रोहन के business को मदद की ज़रूरत थी। शादी के चलते रोहन के परिवार की तरफ से कोई आशा नहीं थी और बाबू जी का business तो सेटल्ड था, यही सोचकर राखी ने हिस्सा ले लिया था।

पर भैया उसका उल्टा मतलब लगाएँगे, उसने ऐसा सोचा ना था। धीरे-धीरे भैया का आना-जान, बातें करना सब कम हो गया। फिर एक दिन माँ ने खबर दी की भैया ने कोर्ट मॅरेज कर ली। राखी तो हैरान रह गयी

राखी भैया से खूब लड़ी कि ऐसी क्या जल्दी थी…। शादी धूमधाम से करते। पर भैया की चुप्पी उसे बेगानेपन का एहसास करा गयी। कई बार राखी ने भैया को उनके बदले व्यवहार के लिए टोका भी, लेकिन उधर से हमेशा कोई जवाब ना आता।

राखी भी धीरे-धीरे भैया से काटने लगी। बाबू जी थे तब चाहे भैया कितनी भी दूर क्यो ना हो, रक्षा बंधन पर ज़रूर आते, पर अब वह सिलसिला ख़तम हो गया था।

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राखी अक्सर अकेले में रोती। दिल के ज़ख़्म दिखती भी तो किसे?? केसे बताती कि उसका अपना हक़ लेना ही उसे भाई से दूर कर गया। उसने आख़िर क्या ग़लत की थी?? राखी यह सवाल पूछती भी तो किससे?? ना माँ कुछ बताती थी, ना भैया कुछ बोलते थे।

भाभी अच्छी थी, पर भैया से संबंधित विषयो पर चुप ही रहती। धीरे-धीरे भाई बहन में दूरी इतनी हो गयी कि आना जान, मिलना-जुलना तो दूर, खत का जवाब देना तक बंद हो गया।

वो भैया जो राखी बंधवाने के लिए राखी के आगे-पीछे घूमते थे, उसकी हर फरमाइश पूरी करते, अब राखी पर बहन को फोन तक नहीं करते। राखी के आँखो से आँसू बहने लगे। आल्बम के पन्ने गीले हो गये थे।

आँखों की नमी से तस्वीरें दिखनी बंद हो गयी। राखी ने आल्बम साफ किया और खाना बनाने में लग गयी।

बच्चों के स्कूल से आने का वक़्त हो गया था। दो दिन बाद रक्षा बंधन था। पर उन्हे अभी से ही राखियाँ खरीदने की पड़ी थी।

शाम को उन्हे बाजार ले जाते वक़्त राखी बहुत उदास थी। बड़ी खूबसूरत राखियाँ थी। बच्चों ने मनपसंद राखियाँ खरीदी। बिटिया ने फरमाईस की मम्मी आप भी राखी खरीद लो।

उसने समझाया कि मामा दूर रहते हैं और वह उन्हे राखी भेज चुकी है, पर बच्चे नहीं माने। बे-मन से एक राखी वह भी ले आई।

रक्षा बंधन के दिन सभी ने नहा-धोकर पूजा की, फिर थाली सज़ा कर नन्ही पलक ने सूरज को राखी बँधी।

बच्चों को राखी बाँधते देख उसका मन भर आया, पर हंसते-खेलते माहोल में उसने अपने आँसू पोंछ लिए। रोहन को पकोड़े पसंद थे, सो राखी पकोड़े तलने लगी। उसी वक़्त door bell बजी।

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थोड़ा हंगामा सुन राखी किचन से बाहर आई। दरवाजे पर माँ और भैया-भाभी थे। एक पल के लिए तो राखी को यकीन ही नहीं हुआ, इतने सालो बाद भैया को जो देख रही थी।

कितने कमजोर हो गये थे। भैया ने बाहें फैलाई, तो राखी के आँखो से आँसू निकल पड़े। वह भाग कर उनके गले लग गयी। दोनो रो रहे थे, बरसो का गुमा हुआ प्यार बह रहा था।

भैया ने कलाई आगे की, राखी थाली उठा लाई। राखी, तिलक, नारियल और मिठाई थाली में रखी थी। हमेशा की तरह राखी ने तिलक लगाया तो भैया रोने लगे। “मुझे माफ़ कर दो बहन, में बहुत मतलबी हो गया था।

असल में बाबू जी पर काफ़ी क़र्ज़ था, जब वो गुज़रे तो आर्थिक परेशानियाँ थी। तेरे द्वारा अपना हिस्सा लेने से मुझे लगा की कलयुग में शायद पैसा ही सब कुछ हो गया है, ‘स्वार्थ’ के अलावा इस दुनिया में और कोई रिश्ता होता ही नहीं।

पर तेरी भाभी ने मुझे आर्थिक परेशानी में देख जब अपने मयके में यही कदम उठाया, तब मुझे एहसास हुआ की औरत शादी के बाद अपने पति से किस कदर जुड़ जाती है।

तुमने जो किया, वो सही था। माँ-बाप पर दोनो का समान हक़ है, चाहे वो बेटा हो या बेटी। तुमने तो हमेशा राखी भेजी, पर में ही प्यार का यह बंधन निभा नहीं पाया।

भैया रोते चले जा रहे थे। माँ, भाभी, रोहन, बच्चे, सब खड़े देख रहे थे। राखी ने थाली में से राखी उठाई और थोड़े गुस्से में कहा- “मेरी फरमाइश पूरी करोगे, तब ही राखी बन्धूंगी…।!” भैया रोते-रोते मुस्कुरा उठे और बोले- “हाँ करूँगा” रक्षा बंधन के इस पवित्र बंधन ने दिलो को आख़िर मिला ही दिया था।

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