बड़े होते बच्चों को कैसे बताये वो वाली बातें?

जी हाँ, थोड़ी माँसूमियत, थोड़ी नादानी, तोड़ा अल्हाड़पन और बहुत सी unmaturity. कुछ ऐसी ही होती है टीनेज लाइफ। कई सवाल मन में आते है, कई शंका होती है, शक भी होती है, कुल मिलकर उलझन कि स्तिथि और समय से गुजर रहे होते है इस उमर में बच्चे। ऐसे में सही परवरिश से आप अपने बच्चे की जरूर मदद कर सकते है।

उन्हे सही उमर में उचित माँर्गदर्सन देकर और उनके मन में सवालों के पनपने से पहले ही उनके जवाब और हल देकर। तो हर माता-पिता के लिए जरूरी है कि वो अपने बड़े होते बच्चों को कुछ बातें जरूर बताए।

अपने बच्चों को जरुर दे ये 7 जानकारी

बड़े होते बच्चों को जरुर बताए ये 7 बातें और ये भी जाने कि कैसे बताए?

1. शरीर में होनेवाले बदलाव

जवानी की और बढ़ते हुए बच्चों के शरीर में बहुत से बदलाव होते है। अचानक शरीर में आ रहे बदलाव से बच्चे घबरा जाते है। उनके मन में भी बहुत सारे सवाल उठाते है। उन्हे बार-बार यह विश्वास चाहिए होता है कि वे सामान्य है। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हे यह महसूस कराए की ये तमाम बदलाव सामान्य है। आप भी जब उनकी उम्र में थे, तो इन्ही बदलाव से गुजरे थे।

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2. यौवन – Puberty

यौवन के बाल, आवाज में बदलाव, चेहरे पर अचानक ढेर सारे मुंहासे, कद का बढ़ना, हॉरमोन में बदलाव आदि के कारणों को बड़े होते बच्चे समझ नहीं पाते, हालाकी आज के इंटरनेट के युग में बहुत सी चीजों के बारे में बच्चे पहले से ही जान जरूर लेते है, लेकिन वे उन्हे ठीक से समझ नहीं पाते।

यह माता-पिता के लिए सबसे जरूरी है कि आप इंतेजर ना करे कि बच्चा आकर आपसे सवाल करे। बेहतर होगा कि समय से पहले ही आप उन्हे बातचीत के दौरान या अन्य तरीकों से इन चीजों के बारे में शिक्षित करते रहे। इससे बच्चे मानसिक रूप से तैयार रहेंगे और गलत जगहों से जानकारी इकट्ठा नहीं करेंगे।

2. मासिक धर्म – Periods

अगर आप इस इंतेजर में है कि जब बच्ची को पीरियड शुरू होगी, तब इस बारे में उसे बताएँगे, तो आप गलत है। अगर आपकी बेटी को इस विषय में कोई भी जानकारी नहीं होगी, तो अचानक पीरियड होने पर खून देखकर वो घबरा सकती है। बेहतर होगा की उसे इस बात का अंदाजा पहले से हो कि पीरियड होना एक प्राकृतिक क्रिया है, जो एक उमर के बाद हर लड़की को होता है और इसमे घबराने जैसी कोई बात ही नहीं है।

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3. आकर्षण – Attraction

जवानी में हार्मोनल बदलाव के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी सहज ही उत्पन्न हो जाता है। आज भी हमारे देश में अधिकतर स्कूल में यौन शिक्षा नहीं दी जाती, लेकिन दूसरी तरफ पारिवारिक माहौल भी ऐसा ही होता है कि सेक्स शब्द को ही बुरा समझा जाता है। यही वजह है कि बच्चे ना कुछ पूछ पाते है, ना समझ पाते है और कुंठित हो जाते है।

इसके परिणाम गंभीर हो सकते है, भविष्य में सेक्स को लेकर विकृत मानसिकता बन सकती है, गलत काम कर सकते है। बेहतर होगा कि बच्चों को समझाए कि आप उनकी उमर के थे तो आपको भी अपने क्लास की कोई लड़की/लड़का पसंद आया करता था, यह बहुत ही सामान्य है।

लेकिन इस आकर्षण को किस तरह से सकारात्मकता में बदला जाए, इसके उपाय देने जरूरी है जैसे –

  • अगर कोई पसंद आ रहा है, तो उससे दोस्ती करने मे, बातचीत करने में कोई बुराई नहीं है।
  • लड़के-लड़की अच्छे दोस्त बन सकते है। एक-दूसरे की मदद भी कर सकते है।
  • बच्चों को बताए की यह उम्र पढ़ाई और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की है।

4. STD – Sexual Transmitted Diseases

Sexual Transmitted Diseases के बारे में भी इस उम्र में ही बच्चों को बता देना और आगाह करना भी माता-पिता का फर्ज़ है। बच्चे इस उमर में प्रयोग करते है, ख़ासतौर से -क्स को लेकर अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने या उनके जवाब ढूंढने के लिए वे बहुत ही उत्सुक रहते है। ऐसे में उन्हे सतर्क करना माता-पिता के लिए बेहद जरूरी है। बच्चों को STD, उससे जुड़े गंभीर परिणाम और उससे बचने के तरीके के बारे में बताए। इसी तरह आप उन्हे हस्तमैथुन के बारे में भी शिक्षित करे।

5. युवा अवस्था में गर्भ धारण – Teenage pregnancy

आजकल चकाचौंध के चलते ना सिर्फ़ जवानी जल्दी होने लगी है, बल्कि बच्चे सेक्स में भी जल्दी दिलचस्पी लेने लगे है। उन्हे से-क्स में जल्दी दिलचस्पी होने के दुष्परिणाम के बारे में बताए। किस तरह से ये सेहत, पढ़ाई और भविष्य को नुकसान पहुँचती है, इससे संबंधित लेख वग़ैरा पढ़ने को दे सकते है। Teenage pregnancy के स्तर और उससे होनेवाले समस्याओं से संबंधित लेख के जरिए भी आप बच्चे को शिक्षित और गाइड कर सकते है।

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6. लत- Addiction

प्रयोग की इस उमर में ऐसा नहीं कि बच्चे सिर्फ़ से-क्स को लेकर ही प्रयोग करते है, वो सिगरेट-शराब और बाकी चीजों की तरफ भी आकर्षित होते है। आप अगर बच्चों के रोल मॉडल बनाना चाहते है, तो सबसे पहले अपने व्यवहार को नियंत्रित रखना होगा। साथ ही अपने बच्चों को व्यसनो से होनेवाले सेहत और पैसों के नुकसान के विषय में समझना होगा। उनके दोस्तों और संगत पर भी ध्यान देना होगा और अनुशासन के महत्व पर ज़ोर देना होगा।

7. Communication और विस्वास

चाहे बच्ची से कितनी भी बड़ी गलती हो जाए, उनमें ये आत्मविश्वास जगाए कि वो अपनी गलती कबूल करे और आपसे आकर बात करे। बच्चों को आप ये भरोसा दिलाए कि आप हर कदम पे उनके साथ है, उन्हे सपोर्ट करने के लिए। अगर उनसे कोई गलत कदम उठ भी जाता है, तो भी घबराने की बजाय वो आपसे शेयर करे।

बच्चों को रिश्ते में communication और विस्वास के महत्व का एहसास दिलाए। आप उनसे कह सकते है कि ना सिर्फ़ उनकी उम्र मे, बल्कि किसी भी उम्र में किसी से भी गलतियाँ हो सकती है। कोई भी perfect नहीं होता, इसलिए अपराध बोध महसूस ना करके communicate करे।

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कैसे करे बच्चों को Educate?

सबसे बड़ा सवाल है कि कहना आसान है की बच्चों को इन बातों के बारे में बताए, लेकिन दरअसल माता-पिता के मन में कई तरह की दुविधा होती है। आपकी बातचीत बहुत ही सामान्य होनी चाहिए। आप confident रहे और कोई अलग सा माहौल बनाकर बात ना करे, जिससे आप के साथ-साथ बच्चे भी असहज महसूस करे।

बच्चों को उनके शरीर के विकास के बारे में इस तरह से बताए कि जिस तरह तुम बड़े हो रहे हो, कद बढ़ रही है, उसी तरह शरीर के अंग भी धीरे-धीरे बड़े होते है। इसी तरह लड़कों को nightfall के बारे में समझाना चाहिए कि शरीर में जो चीज ज्यादा हो जाती है, उसे शरीर बाहर फेक देती है। इसमे घबराने की कोई बात नही। तो 10 साल के बच्चे के लिए से-क्स एजुकेशन यही और इसी तरह से होनी चाहिए।

यह जरूरी है कि बच्चों को जवानी से पहले ही मानसिक रूप से धीरे-धीरे इस विषय पर तैयार किया जाए, लेकिन आजकल जवानी जल्दी होने लगी है। बच्चियों को 6 क्लास में ही पीरियड होने लगे है, तो ऐसे में क्या 5 क्लास से ही से-क्स एजुकेशन देनी शुरू करनी चाहिए? जबकि यह उम्र बहुत कम होगी से-क्स एजुकेशन के लिए। इसलिए यह ध्यान में रखना भी बेहद जरूरी है कि बच्चों को उनकी उमर के अनुसार ही शिक्षित करे यानी बताने का तरीका ‘age friendly’ होना चाहिए।

बेटी को आप अगर यह बताएँगे कि पीरियड में खून निकलता है, तो वो डर जाएगी। आप उसे कहे कि हमारे शरीर में बहुत से toxins होते है, जिनके बाहर निकलना जरूरी भी है और प्राकृतिक भी।

शरीर में ऐसे कई ग़ैरजरूरी विषैले तत्व होते है, जिन्हें शरीर खुद बाहर निकल देती है, ताकि हम स्वस्थ रह सके।

आप उन्हे उदाहरण देकर समझा सकते है कि जिस तरह आँखों में कचरा चला जाए, तो उसका बाहर निकलना जरूरी होता है, इसी तरह शरीर के अंदर भी अलग-अलग अंग के कचरा जम जाता है।

साथ ही बच्ची को यह भी बताए कि जो बाहर निकलता है, वो दरअसल खून नहीं होता, वो गैरजरूरी चीज है, जिसका बाहर निकलना स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है।

शारीरिक आकर्षण के बारे में भी जरूर बताए की यह सामान्य है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वो इंटिमेट हो जाए। बच्चे इस उमर में प्रयोग करते ही है और शायद उन्हे पता भी नहीं चलता की कब वो अपनी सीमा तोड़ कर गलत कदम उठा लेते है।

यह भी उन्हे अच्छी तरह से समझाए। बेहतर होगा इंटरनेट के इस्तेमाल के समय आप साथ बैठे, बहुत ज़्यादा बच्चों को घर पर अकेला ना छोड़े।

बच्चों को शिक्षित करने का पहला कदम और बेहतर तरीका होगा की उन्हे किताबें, आर्टिकल्स और अच्छी पत्रिकाओ के जरिए समझना शुरू करे और फिर उन विषयों पर आप बात करके उनकी उलझन और मन में उठ रहे सवाल और दुविधाओं को दूर करे।

सबसे जरूरी है कि आप रोल मॉडल नहीं बन सकते, तो बच्चों को हिदायते ना ही दे। आपको देखकर ही बच्चे अनुशासन सीखेंगे।

आप अगर खुद सिगरेट-शराब पीते है, घंटो नेट पर, फोन या टीवी पर समय बिताया करते है, तो बच्चों को आपकी कही बातों को मात्र भाषण ही लगेगी।

माता-पिता यह भी जाने

अक्सर माता-पिता इस बात को लेकर असमंजस में रहते है कि क्या माँ-बेटियो को और पिता-बेटे को इस बारे में बता सकते है या माँ भी बेटे को और पिता भी बेटी को शिक्षित कर सकते है।

जबकि यह एक बेहतर तरीका है कि opposite के होने के बाद भी माता-पिता बच्चों से इस पर बात करे।

इससे वो समझ सकेंगे कि adults के लिए यह सामान्य बात है कि स्त्री-पुरुष के शरीर के विषय में वो सब कुछ जानते है और इसमे हिचकिचाने की कोई बात नहीं है।

क्या लड़कियों को लड़कों के विषय में और लड़कों को लड़कियों के विषय में भी शिक्षित करना सही होगा, यह भी एक सवाल माता-पिता के मन में आती है? जवाब यही है कि क्यों नही? बच्चों को अपने शरीर के प्रति जितना कम जागरूक और जितना अधिक जानकार बनाएँगे, उतना ही उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

लड़के-लड़कियों दोनो को पता होना चाहिए की जवानी सबके लिए सामान्य बात है, यह नेचुरल प्रोसेस है, जिससे गुजरना पड़ता है।

इससे दोनो में एक-दूसरे के प्रति अधिक समनता की भावना, अधिक संवेदनशीलता और अधिक सम्मान भी पनपेगा।

बच्चों को कभी भी CBI की तरह छान-बीन ना करे, बल्कि उनमें दिलचस्पी दिखाए। अपनी daily routing उन्हे बताए और बातों-बातों में उनकी daily routing, दोस्तों का हाल, पढ़ाई, खेल, मूवीस आदि के बारे में पूछे। इससे रिश्ते सहज होंगे और sharing ज़्यादा से ज़्यादा होगी।

बच्चों के दोस्तों को भी घर पर कभी डिनर, पार्टी या लंच पर आमंत्रित करे। इससे आपको आंदज़ा होगा कि बच्चों के दोस्त कौन-कौन है और किस तरह की संगत में बच्चे दिनभर रहते है।

बढ़ते बच्चों में बहुत जल्दबाज़ी होती है खुद को mature और ज़िम्मेदार दिखाने की, क्योंकि वो चाहते है कि लोग उन्हे गंभीरता से ले।

आप अपने बच्चों पर भरोसा जताकर उन्हे कुछ जिम्मेदारी जरूर सोपे। ऐसे में उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो खुद को महत्वपूर्ण समझकर और भी mature और जिम्मेदारी से काम लेंगे।

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