एक बार बादशाह के हाथ ही उंगली बुरी तरह घायल हो गई। अकबर को व्याकुल देख बीरबल बोले, भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है।
इसे सुनकर अकबर को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने फौरन बीरबल को चार दिन के लिए कारागार में डलवा दिया। दूसरे दिन वे शिकार खेलने गए। अकेले होने के कारण उनका शिकार में मन नहीं लगा और रास्ता भटककर वे जंगलियों की बस्ती में जा पहुंचे। जंगलियों ने उन्हें पकड़ लिया और बलि चढ़ाने की तैयारी करने लगे।
ऐसे में बादशाह को बीरबल की कमी बहुत खली। वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करूं?
तभी जंगलियों के पुजारी की नजर अकबर की घायल उंगली पर पड़ी तो वह बोला, इसे छोड़ दो। इसकी बलि नहीं दी जा सकती। ये खंडित है।
अकबर को छोड़ दिया गया। जान बचाकर वे अपनी राजधानी आए और सोचने लगे कि बीरबल ने सही कहा था। अगर आज यह कटी उंगली न होती तो मैं तो बलि चढ़ गया होता।
उन्होंने महल में आते ही बीरबल को रिहा करवाया और बोले, तुमने ठीक कहा था बीरबल। ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।
क्या बात है जहाँपनाह, कल तो आपने मेरी इसी बात से नाराज होकर मुझे कारावास में डलवा दिया था। और आज आप ही इस बात को उचित ठहरा रहे हैं, आखिर बात क्या है?
कल तक हमें इस कथन की सच्चाई पर संदेह था, किन्तु आज विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।
मैं कुछ समझा नहीं जहाँपनाह।
बादशाह ने बीरबल को पूरी घटना बताई। फिर कहा, अगर उंगली घायल न हुई होती तो आज अकबर मारा जाता, लेकिन एक बात बताओ कि मैंने तुम्हें कारागार में डाला, इसमें तुम्हारा क्या भला हुआ?
जहाँपनाह, अगर आप मुझे कारागार में न डलवाते तो मैं भी आपके साथ शिकार पर जाता। जाहिर है हम दोनों ही जंगलियों द्वारा पकड़े जाते। तब, आपको तो वह खंडित कहकर छोड़ देते, मगर मैं सही सलामत था, इसलिए मेरी बलि चढ़ा देते। ईश्वर ने मुझे कारागार में डलवाकर अच्छा ही तो किया।
बीरबल का उत्तर जानकर बादशाह बेहद खुश हुए।
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