कहावत और उनके मतलब: HIndi kahawat or unke matlab, Hindi kahawat meaning ke sath:
1. अन्त भले का भला – अच्छे काम का परिणाम अच्छी ही होता है
2. अंधों में काना राजा – मूर्खों में थोड़ा पढ़ा-लिखा बड़ा विद्वान समझा जाता है
3. अंधेर नगरी चौपट राजा – अधिकारी अयोग्य हो तो सब कर्मों में धांधली मच जाती है
4. अधजल गगरी छलकत जाए – थोड़े से ज्ञान . धन या सम्मान वाले मनुष्य बहुत अभिमान का प्रदर्शन करते हैं
5. अन्धा क्या चाहे दो आंखें – जब मनचाही वस्तु बिना प्रयास मिल जाए
6. अन्धी पिसे कुत्ता खाय – धन कोई कमाए और उसका उपयोग कोई और करे
7. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है – अपने घर में कमजोर भी बहादुरी दिखाता है
8. अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत – हानी होने के बाद पछताने से क्या लाभ
9. अपनी-अपनी ढपली , अपना-अपना राग – सबकी अलग-अलग राय होना
10. आम के आम गुठलियों के दाम – एक काम या वस्तु से दो काम होना
11. अशर्फियाँ लूटें , कोयलों पर मोहर – थोड़ा बचाने की चिन्ता में अधिक नष्ट कर देना
12. आंख के अंधे – गाँठ के पुरे मुर्ख , परन्तु धनि
13. आप सुखी , जग सुखी – सुखी लोग दुखियों की अवस्था नहीं जान सकते
14. आंख का अँधा नाम नैनसुख – गुणों के विरुद्ध नाम होना
15. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है – अपराधी के साथ रहने वाला निरपराधी भी मारा जाता है
16. आधी को छोड़ सारी को धावे ,आधी मिले न सारी पावे – अधिक लोभ से हानि होती है
17. आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाए – भविष्य की कठिनाई के लिए पहले ही सावधान रहना चाहिए
18. इस हाथ दे उस हाथ ले – दान दिया हुआ हो , तो उसका सुफल अवश्य मिलता है
19. इस माया के तीन नाम, परसू , परसा , परसराम – ज्यों-ज्यों धन बढ़ते हैं , त्यों-त्यों धनि का नाम भी बढ़ जाता है
20. ईश्वर की माया कहीं धुप कहीं छाया – परमात्मा की लीला विचित्र है
21. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे – अपना अपराध स्वीकार न करके उल्टा पूछने वाले को दोषी ठहराना
22. ऊठ के मुंह में जीरा – बड़े को थोड़ी वस्तु देना
23. ऊँची दुकान फीका पकवान – आडम्बर अधिक और तत्व थोड़ा
24. एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु के अनेक ग्राहक /इच्छुक
25. एक-एक दो ग्यारह – एकता में बड़ा बल है
26. एक तो करेला , दुसरे नीम चढ़ा – एक तो स्वाभाविक दोष होना , उस पर उस दोष का किसी कारण से और भी बढ़ा जाना
27. एक सड़ी मछली सरे तालाब को गन्दा कर देती है – अच्छे मनुष्यों में यदि एक बुरा आदमी आ जाये तो वह समाज को कलंकित कर देता है
28. एक तंदरुस्ती हजार नियामत – स्वास्थ्य बहुत बड़ा धन है
29. एक हाथ से तली नहीं बजती – लड़ाई में दोनों पक्ष कारण होते हैं
30. एक पन्थ दो काज – एक ही उपाय से दो काम निकालना
31. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर – कब किसी कठिन काम को करना है तो आने वाली विपत्तियों से डरना नहीं चाहिए
32. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती – बड़े काम के लिए विशेष प्रयत्न की आवश्यकता होती है
33. काठ की हंडी बार-बार नहीं चढ़ती – बेईमानी बार-बार नहीं फलती
34. कहां राजा भोज कहां गंगू तेली – आकाश-पताल का अंतर
35. कड़ाई से गिरा , चूल्हे में पड़ा – एक आपत्ति से छुटकर दूसरी आपत्ति में पड़ना
36. कोयले की दलाली में मुंह काला – दुष्टों की संगती में कलंक लगता है
37. काम काम को सिखलाता है – काम करने से ही अनुभव बढ़ता है
38. का वर्षा जब कृषि सुखाने – समय बीतने पर साधनों के मिलने से क्या लाभ
39. खोदा पहाड़ , निकली चुहिया – बहुत परिश्रम करने पर बहुत कम फल प्राप्त होना
40. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है – एक को देखकर दूसरा भी वैसा ही इच्छा या चेष्टा करता है
41. खग ही जाने खग की भाषा – साथी ही साथी का और पड़ोसी ही पड़ोसी का स्वभाव जनता है
42. गागर में सागर भरना – विस्तृत बात को संक्षेप में कहना
43. गुड़ खाये , गुलगुलों से परहेज – बनावती परहेज
44. गंगा गये गंगादास , जमुना गये जमुनादास – किसी बात पर स्थिर न रहना
45. घर का जोगी जोगना , आन गाँव का सिद्ध – घर के गुणी मनुष्य का भी मान न होना
46. चोर का साथी गिरहटक – सभी अपने जैसे साथी को खोज लेते हैं
47. चिराग तले अँधेरा – विद्वान या बुद्धिमान के यहाँ भूल होना
48. चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये – बहुत कंजूस होना
49. चोर के पैर नहीं होते – पापी का मन स्थिर नहीं होता
50. चार दिन चांदनी फिर अँधेरी रात – सांसारिक सुख स्थायी नहीं होता
कहावत और उनके अर्थ – Proverbs and there meaning [Collection-2]
1.. छछूंदर के सर पे चमेली का तेल – किसी अयोग्य पुरुष को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके लिए वह योग्य न हो.
2. छाती पर सांप लौटना – ईर्ष्या से मन में जलन.
3. जैसा राजा वैसा प्रजा – यदि अधिकारी अच्छे हो तो मातहत (आधीन किया हुआ) भी अच्छे होंगे और यदि अधिकारी बुरा हो तो मातहत भी बुरे होंगे.
4. जितने नर उतनी बुद्धि – सभी लोगों के विचार एक से नहीं मिलते.
5. जाको राखे साईया मार न सकिहै कोय – जिसका भगवान रक्षक है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
6. जब तक सांस तब तक आस – जीवन के अंत तक आस बनी रहती है.
7. जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि – कवि की कल्पना का अंत नहीं होता.
8. जिसकी लाठीउसकी भैंस – शक्तिशाली की ही विजय होती है.
9. जैसी करनी वैसी भरनी – कर्मों के अनुसार फल मिलता है.
10. जमात करामात – संगठन में ही शक्ति है.
11. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं – अधिक बोलने वाले कुछ काम नहीं करते.
12. जल में रहकर मगर से बैर – जिसके आश्रित रहना उसी से शत्रुता करना.
13. जैसे को तैसा – जो जैसा करे उससे वैसा ही बदला लेना.
14. जैसा मुंह वैसी चपेट – समय और पात्र देखकर काम करना.
15. नौ दिन चले अढाई कोस – बहुत अधिक समय में बहुत कम काम करना.
16. जितनी चादर देखो, उतने पैर फैलाओ – सामर्थ्य के अनुसार काम करो.
17. डूबते को तिनके का सहारा – कठिनाई में थोड़ी-सी सहायता भी किसी का कल्याण कर देती है.
18. थोथा चना बजे घना – ओछे आदमी दिखावा बहुत करते है.
19. तेते पाँव पसारिये जेती लम्बी सौर – अपनी शक्ति के अनुसार ही खर्च करना चाहिए.
20. दूध का जला छाछ को फूंक-फूंककर पिता है – किसी काम में हनी हो जाने पर दुसरे काम को भी करता हुआ डरता है, चाहे उसमें डर की सम्भावना न भी हो.
21. दूर के ढोल सुहावने – दूर की अथवा अप्राप्त वस्तु अच्छी मालूम होती है.
22. दोनों हाथों में लड्डू – दोनों ओर से लाभ.
23. दुविधा में दोनों गये, माया मिला न राम – अस्थिर विचारवाला मनुष्य.
24. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का – जिसका कोई निश्चित स्थान अथवा मत न हो, वह इधर का न उधर का.
25. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी – ऐसी शर्त पर काम स्वीकार करना जो पूरी न हो सके.
26. नाच न जाने आँगन टेढ़ा – काम करने की विधि न जानने पर इधर-उधर के बहाने बनाना.
27. नौ नगद न तेरह उधार – जो चीज मिल जाये वही अच्छी है.
28. नेकी कर कुएं में डाल – उपकार करके उसे जताना नहीं चाहिए.
29. नीम न मीठा होय सींचो गुड़-घी से – चाहे कुछ भी कर लो, स्वभाव नहीं बदलता.
30. पुरुष पुरातन की वधु क्यों न चंचल होय – धन-दौलत किसी के पास नहीं टिकते.
31. पेट भरे मन-मोदक से कब – केवल सोचते रहने से किसी काम में सफलता नहीं मिलती.
32. पैसा पैसे को खीचता है – धन से धन कमाया जाता है.
33. पराधीन सपनेहूँ सुख नहीं – परतंत्रता में दुख ही दुख है.
34. फटी न जिसके पाँव बिबाई, वह क्या जाने पीर पराई – सुखी मनुष्य दुसरे के कष्टों का अनुमान नहीं लगा सकता.
35. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – जब कोई मनुष्य किसी वस्तु की कद्र न करे.
36. बिना सेवा मेवा नहीं – तपस्या से ही अच्छा फल मिलता है.
37. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय – जो हो गया सो हो गया, आगे के लिए संभाल जाना चाहिए.
38. बूंद-बूंद सों घट भरे टपकता रीती होय – थोड़ा-थोड़ा करने से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं, थोड़ी-थोड़ी हनी होने से एक दिन सारा कम बिगड़ जाता है.
39. बेकार से बेगार भली – निकम्मा बैठने से कुछ करना फिर भी अच्छा है.
40. बिल्ली के सराये छींका नहीं टूटता – गलियों से श्रेष्ठ व्यक्ति को कोई हनी नहीं हो सकती.
41. भागते चोर की लंगोटी ही सहि – जहाँ से कुछ भी मिलने की आशा न हो, वहां से कुछ थोड़ा सा मिल जाना भी ठीक है.
42. भैस के आगे बिन बजाय, भैस खड़ी पगुराय – मूर्खों को अच्छे-अच्छे उपदेश देना या ज्ञान की बात करना भूल है.
43. मुंह में राम बगल में छुरी – ऊपर से मित्रता, मन में शत्रुता.
44. माया को माया मिले कर-कर लम्बे हाथ – धन धनी के पास ही जाता है.
45. मनुष्य जोड़े पली-पली, राम डुलाए कुप्पा – मनुष्य लोभ करके थोड़ा-थोड़ा जोड़ता है, परन्तु दुर्भाग्य उस सबको एक ही बार में नष्ट कर देता है.
46. मेरे मन कछु और है, साईं के कछु और – मनुष्य कई प्रकार की कल्पनाएँ और इच्छाएं करता है, कई योजनाएं बनाता है, परन्तु भगवान और ही ढंग से उसका भविष्य पलट देते हैं.
47. रोज कुआँ खोदना रोज पानी पीना – उतना ही कमाना जितना खर्च के लिए काफी हो.
48. रोपे पेड़ बाबुल के आम कहाँ से होय – बुरे कार्य का अच्छा फल कैसे हो सकता है.
49. लातों के भुत बातों से नहीं मानते – निच लोग डंडे के भय से ही काम करते हैं.
50. लोहे से लोहा कटता है – शत्रु को शत्रु से नष्ट करवाना चाहिए.
कहावत और उनके अर्थ – Proverbs and there meaning [Collection-3]
1. विषरस भरा कनक घट जैसे – धूर्त लोग बातें तो मीठी करते हिं, परन्तु उनके मन में ठगने की बात रहती है, अथवा शरीर से सुन्दर परन्तु काम खोटे.
2. विषस्य विषमोषधम – लोहा लोहे को काटता है, काँटा कांटे से ही निकलता है.
3. समय पाय तरुवर फले, केतिक सींचो नीर – कार्य का फल तत्काल नहीं मिलता, उसमें समुचित समय अवश्य लगता है.
4. सांच को आंच नहीं – सच्चे मनुष्य को भय नहीं होता.
5. सर मुडाते ही ओले पड़े – काम के शुरू होते ही विघ्नों का पड़ना.
6. सांप भी मर जाय, लाठी भी न टूटे – काम भी हो जाये और हानि भी न उठानी पड़े.
7. हाथ पर दही नहीं जमता – सभी कार्यों के होने में कुछ समय तो लगता ही है.
8. हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं.
9. हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और – जो कहे कुछ और करे कुछ.
10. होनहार बिरवान के होत चिकने पात – बचपन में ही श्रेष्ठ व्यक्ति के गुण दिखाई दे जाते हैं.
11. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – संगठन के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती.
12. अन्धे के हाथ बटेर लगी – किसी को बिना परिश्रम के अच्छी वस्तु प्राप्त हो जाती है.
13. अटका बनिया देय उधार – दबाव पड़ने पर ही कोई व्यक्ति काम करता है.
कहावत और उनके अर्थ
14. अंडा सिखावे बच्चे को ची ची मत कर – जब छोटे व्यक्ति बड़े को उपदेश दें.
15. अधेला न दे अधेली दे – जब कोई यों तो कुछ न दे, पर फंसने पर बहुत अधिक देता है.
16. अन्त भला सो भला – जिसका परिणाम अच्छा है वह सर्वोत्तम है.
17. अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे – स्वार्थी अपने ही लोगों का पक्षपात करता है.
18. अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोष – अपना ही आदमी जब बुरा है, तो आलोचना करने वालों का क्या दोष.
19. अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख – अपनी अच्छी वस्तु को खोकर जब कोई दूसरों के सामने हाथ पसारता है.
20. अपनी करनी पार उतरनी – अपने पुरुषार्थ से ही मनुष्य को सफलता प्राप्त होती है.
21. आँख और कान में चार अंगुल का फर्क – देखने और सुनने में अधिक अन्तर होता है.
22. आँख का उठाना-बैठना दोनों बुरे – जब किसी मनुष्य का प्रसन्न होना और अप्रसन्न होना दोनों हानिकारक हों.
23. आटे का चिराग घर रखें तो चूहा खाय, बहार रखें तो कौआ ले जाए – जो मनुष्य कमजोर है, उसकी रक्षा किसी प्रकार नहीं हो सकती.
24. आधा तीतर आधा बटेर – एक निश्चित स्वरुप या मत न होना.
25. आप काज महाकाज – अपना कार्य ही अधिक महत्वपूर्ण होता है.
26. आप मरे जग परले – अपना नाश होने पर तो फिर संसार ही समाप्त सा प्रतीत होता है.
27. आ बैल मुझे मार – जब कोई जान-बुझकर ऐसी बात करता है जिससे विपत्ति आती है.
28. आये थे हर भजन को, ओटल लगे कपास – जब कोई किसी अच्छे कार्य के लिए कहीं जाता है, किन्तु व्यर्थ के कामों में फंस जाता है.
29. आगे नाथ न पीछे पगहा- पूरी तरह स्वतंत्र होना.
30. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले – खर्च कोई और करे, पर जलन किसी और को हो.
31. तीन लोक से मथुरा न्यारी – कोई वस्तु या व्यक्ति निराले ढंग का होता है.
32. तरन्तु दान महाकल्याण – जो काम करना हो, उसे शीघ्र कर डालना चाहिए.
33. तबेले की बला बन्दर के सिर – अपराध तो कोई और करे, पर फंसे कोई और.
34. तीन में न तेरह में मृदंग बजाये डेरे में – जो मनुष्य किसी ओर नहीं होता, वह निश्चिन्त रहता है.
35. सिर पर बैठना – मनमानी करना.
36. दिन दुनी रात चौगुनी – सब प्रकार से उन्नति.
37. दीवारों के भी काम होते हैं – गुप्त मंत्रणा सदा एकांत में ही करनी चाहिए.
38. दूध का दूध पानी का पानी – वास्तविक और सच्चा न्याय करना.
39. दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते – मुफ्त की चीज में अवगुण नहीं देखे जाते.
40. देखें ऊंट किस करवट बैठता है – देखना है परिणाम क्या निकलता है.
41. नया नौ दिन, पुराना सौ दिन – पुराणी वस्तु ही स्थिर रहती है, नई नहीं.
42. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी – न कारण रहेगा, न काम होगा.
43. नाक कटी, पर घी तो चाटा – अनादर हुआ तो क्या हुआ, लाभ तो प्राप्त करके ही छोड़ा.
44. नानी के आगे ननीहाल की बातें – जब कोई मुर्ख पूर्ण जानकार के सामने बातें करता है.
45. नाम बड़े पर दर्शन छोटे – प्रसिद्धि तो अधिक हो, किन्तु तत्व कुछ भी न हो.
46. नौ सौ चूहे खाय के बिलारी बैठी तप पे – अधिक पाप करने के पश्चात पूण्य का दिखावा करना.
47. न सावन सुखा न भादों हरा – सर्वदा एक ही स्थिति में रहना.
48. पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत के खेल – जब कोई अधिक शिक्षित व्यक्ति भाग्यवश बेकार रहता है.
49. प्रभुता पाई काहि मद नाहीं – अधिकार और ऐश्वर्य पाने पर किसे गर्व नहीं होता.
50. पानी पी घर पुछ्नो नाहीं भलो विचार – काम करने के पश्चात शंकित होकर परिचय पूछना ठीक नहीं.
कहावत और उनके अर्थ – Proverbs and their meaning [Collection-4]
1. बगल में छोरा गाँव में ढिंढोरा – सामने रखी चीज भी दिखाई न देना.
2. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी – किसी न किसी दिन अवश्य अपराधी पकड़ा जाता है.
3. बोया पेड़ बाबुल का आम कहाँ से होई – जो जैसा करता है, उसे उसके अनुसार फल भोगना ही पड़ेगा.
4. बद अच्छा बदनाम बुरा – बुरा होना अच्छा, पर कलंकित होना ठीक नहीं.
5. बांबी में हाथ तू डाल, मन्त्र मैं पढूं – कोई सरल काम तो स्वय करना, किन्तु कठिन काम दूसरों को सौपना.
6. बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज – अधिक डींग भरना.
7. बारह वर्ष दिल्ली में रहे, पर भाड़ ही झोंका – जब कोई मनुष्य अच्छे स्थान पर रहने पर भी अच्छी बातें नहीं सीखता या सुअवसर वाले स्थान पर रहकर भी लाभ नहीं उठा पाता.
8. बिना रोये माँ भी दूध नहीं पिलाती – प्रयत्न किये बिना किसी को कोई वस्तु नहीं मिलती.
9. बगल में छुरी मुंह में राम-राम – ऊपर से तो मित्रता, किन्तु भीतर से शत्रुता.
10. बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया – लोग धनी व्यक्ति का ही सम्मान करते हैं, अन्य रिश्ते-नाते के कारण मनुष्य का सम्मान नहीं होता.
11. बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख – बिना याचना के अच्छी से अच्छी वस्तु प्राप्त हो जाती है, किन्तु याचना करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता.
12. भई गति सांप छुछुंदर केरी – किसी काम को करने पर भी आपदा, और न करने पर भी आपदा, दोनों स्थितियों में डर और खतरा.
13. भूख सिंह न तिनका खाय – शक्तिशाली व्यक्ति विपत्तिग्रस्त होने पर भी तुच्छ वस्तु को स्वीकार नहीं करता.
14. भेड़ जहाँ जायेगा, वहीँ मुंडेगी – जो मनुष्य सरल ह्रदय का होता है, वह सर्वत्र ही ठगा जाता है.
15. भेड़ पूंछ भादों नहीं, को गहि उतरे पार – कठिन आपदा पड़ने पर साधारण मनुष्य की सहायता से कुछ भी लाभ नहीं होता.
16. भौर न छाडे केतकी तीखे कंटक जान – जो सच्चा प्रेमी होता है वह विघ्न-बाधाओं के पड़ने पर भी अपने प्रेमी का त्याग नहीं करता.
17. भूल गये राग रंग, भूल गये छकड़ी, तीन चीज याद रहीं, नून तेल लकड़ी – ग्रहस्थी के चक्कर में बुरी तरह फंसा हुआ व्यक्ति.
18. मन चंगा तो कठौती में गंगा – जो व्यक्ति आचरण और ह्रदय के होते हैं, उनके लिए गंगा-स्नान आवश्यक नहीं है.
19. मन-मन भावे, मुंड हिलावे – कोई मनुष्य इच्छा रहने पर भी अनिच्छा प्रकट करता है.
20. मान न मान, मैं तेरा मेहमान – जबर्दस्ती किसी के गले पड़ना.
21. मार के आगे भुत भागता है – दण्ड से सभी लोग डरते हैं.
22. मुल्ला की दौर मस्जिद तक – जब किसी मनुष्य की क्षमता सिमित होती है.
23. मियां की जुटी मियां के सिर – कोई दुसरे की वस्तु से ही उसका भला करने को दिखावा करता है.
24. मन हारे हार हैं, मन के जीते जीत – मन ही सब कुछ होता है, निर्बलता और सबलता मन पर ही आश्रित हैं.
25. मरता क्या न करता – आपत्तियों में फंसा हुआ मनुष्य सब कुछ कर डालता है.
26. मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की – जब सुधार की चेष्टा करने पर भी कोई व्यक्ति और अधिक बुराइयों में फंस जाता है.
27. मानों तो देव नहीं तो पत्थर – मन की भावना से ही किसी को श्रेष्ठ माना जाता है.
28. मेरी ही बिल्ली मुझसे ही म्यायु – अपने आश्रयदाता को ही आँख दिखाना.
29. यह मुंह और मसूर की दाल – अपनी योग्यता और शक्ति से बढ़कर वस्तु पाने या काम करने को अभिलाषा करना.
30. यथा नाम तथा गुण – नाम के अनुसार ही गुण भी होता है.
31. रस्सी जल गई, बल नहीं गया – बुरी अवस्था को प्राप्त होने पर भी जो मनुष्य अपने गर्व को नहीं छोड़ता.
32. राई से पर्वत करें, पर्वत राई मांहि – भगवान शक्तिशाली है. वे तुच्छ को महान और महान को तुच्छ बना देता है.
33. रातों रोई एक न मुआ – अधिक समझाने पर भी किसी को तनिक भी समझ में नहीं आना.
34. लकड़ी के बल बन्दर नाचे – दुष्ट और धूर्त लोग डंडे से ही वश में आते हैं अथवा किसी बड़े का सहारा पाकर ही मनुष्य उछलता है.
35. वा सोने को जरिये, जासों टूटे कान – सुन्दर और बहुमूल्य वस्तु किस काम की, जिससे हानि हो.
36. विधि का लिखा, को मेटन हारा – भाग्य की बात कोई नहीं टाल सकता.
37. विष निकलो अति मथन ते, रत्नाकर हूँ माहिं – अत्यधिक संघर्ष और खींचातानी का परिणाम अच्छा नहीं होता.
38. सन्त हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार – अच्छे स्वभाव के लीग केवल गुणों को ही ग्रहण करते हैं, अवगुणों को छोड़ देते हैं.
39. समरथ को नहिं दोष गुसाई – जो लोग समर्थ और शक्तिशाली होते हैं, उन्हें दोष नहीं मिलता.
40. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता – अधिक भोलेपन से कार्य पूर्ण नहीं होते.
41. सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजो रंग – जो लोग प्रकृति के दुष्ट ही होते हैं वे बहुत समझाने पर भी दुष्टता को नहीं छोड़ते.
42. सौ सयाने एको मत, मुरख आयो अपनी – अनेक बुद्धिमानों में भी एकता होती है , पर मूर्खों में नहीं होती.
43. सौ सुनार की एक लुहार की – निर्बलों के सौ प्रहार की अपेक्षा बलवान का एक प्रहार प्रयाप्त होता है.
44. सब धान बाईस पंसेरी – अच्छे-बुरे को एक-सा समझना.