अकबर बादशाह का दरबार लगा हुआ था। वे राज-काज के काम निपटाकर हमेशा की तरह दरबारियों से बातें कर रहे थे। अचानक उनके मन में एक विचार आया और दरबारियों से मुखातिब होकर बोले। एक महीना तीस दिन का होता है। इसमें कितने सारे काम करने पड़ते है, अगर महीना 60 दिन का कर दिया जाए तो कैसा रहेगा?
दरबारियों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। फिर सभी ने बादशाह की बात का समर्थन किया। जहाँपनाह, आपका कहना बिल्कुल सही है। तीस दिन का महीना सचमुच बहुत छोटा है। महीना तो 60 दिन का ही होना चाहिए।
बीरबल अपने आसन पर शांति से बैठे थे।
बादशाह ने उनसे पूछा, क्यों बीरबल, हमारा विचार तुम्हें कैसा लगा? अगर महीना 60 दिन का हो तो अपना काम ठीक तरह से चलेगा न?
बीरबल बोले, जहाँपनाह, आपका विचार वास्तव में बहुत उत्तम है, लेकिन इसके लिए पहले एक काम करना पड़ेगा।
बीरबल का समर्थन पाकर बादशाह बेहद खुश हुए। उन्हें सचमुच लगा कि उन्होंने बहुत बढ़िया बात सोची है। वर्ना बीरबल उनकी बात में नुक्स जरुर निकालते।
आनंद-विभोर होकर उन्होंने पूछा, बीरबल जल्दी से बताओ, हमें क्या करना पड़ेगा?
बीरबल ने कहा, जहाँपनाह, चंद्रमा के कारण पृथ्वी पर एक महीने में 15 चांदनी रातें 15 अँधेरी रातें होती हैं। इसलिए पृथ्वी पर 30 दिन का महीना होता है। यह प्रकृति का नियम है। आप चंद्रमा को आज्ञा दीजिए कि वह 30 चांदनी रातें और 30 अँधेरी रातें बनाए। आपकी आज्ञा के अनुसार अगर चंद्रमा यह परिवर्तन कर लेता है, तो तुरंत ही हम 60 दिन के महीने की मुनादी कर देंगे।
ऐसा कैसे हो सकता है? चंद्रमा हमारी आज्ञा क्यों मानेगा?
अगर ऐसा नहीं हो सकता तो वैसा भी नहीं हो सकता जहाँपनाह, जैसा आप चाहते हैं। हमारी इच्छाओं से प्रकृति के नियम नहीं बदल सकते। बीरबल ने कहा।
बीरबल की समझ से बादशाह को मालूम हो गया कि उन्होंने 60 दिन का महीना करने के जो प्रस्ताव रखा था, वह गलत था। उन्होंने दरबारियों की तरफ देखकर कहा, तुम लोग इसलिए बीरबल नहीं हो कि बीरबल की भांति तुमने समझदारी नहीं है। तुम केवल चापलूस हो।