समझदार लकड़हारा – पंचतंत्र की कहानी

Samjhdari dikhao, panchtantra ki kahani.. किसी शहर में एक मूर्ख लकड़हारा रहता था। एक दिन जब वह खाना खा रहा था, तो मक्खियाँ आ-आकर बहुत तंग करने लगी। वह गुस्से से भर उठा और उसने कमर से पेटी खोलकर मक्खियों पर दे मारी। पेटी के चोट से कई मक्खियाँ मर गई।

एक, दो, तीन उसने गिना और खुशी से चिल्ला उठा – ओह, मैं कितना बहादुर हूं। एक ही चोट में सात-सात मक्खियाँ। मैं क्या नहीं कर सकता?

अब वह कोई साहसपूर्ण कार्य करना चाहता था। इसलिए सबसे पहले उसने अपनी पेटी पर लिखा – एक चोट में सात। फिर वह घर से निकल पड़ा। रास्ते में उसने झाड़ी पर फंसी एक चिड़िया देखी, उसने चिड़िया को निकालकर जेब में डाल लिया। और वह लकड़हारा आगे बढ़ गया।

अभी वह थोड़ा ही दूर गया था कि उसे सामने एक राक्षस दिखाई दिया। अब तो वह बहुत घबराया। डर से उसका खून सूखने लगा, परन्तु उसने अपना डर राक्षस पर प्रकट नहीं किया। वह बहुत शांति से खड़ा रहा, जैसे कोई बात ही नहीं हुई हो।

राक्षस ने लकड़हारे को देखा और पूछा – तुम कौन हो, यहाँ क्यों आए हो?

लकड़हारे ने ऐसा प्रकट किया, जैसे उसने उसकी बात सुनी ही नहीं।

इस पर राक्षस को क्रोध आ गया। वह अकड़कर लकड़हारे से बोला – भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो मार डालूँगा।

लकड़हारा बड़े इत्मीनान से बोला – क्यों मैं क्यों भागूँ? क्या तुम मुझसे अधिक बहादुर हो? तुम मुझसे लड़कर देख लो।

राक्षस बड़े जोर से हंसा और बोला – तुम, तुम मुझसे लड़ोगे। क्यों मरना चाहते हो? भाग जाओ यहाँ से। मैं तुम जैसे छोटे आदमी से क्या लडूंगा? अगर तुम देखना चाहते हो कि कौन बहादुर है, तो पत्थर फेंककर देख लो। जिसका पत्थर दूर जाए, वही अधिक बहादुर है।

यह कहकर राक्षस ने जल्दी से एक बड़ा पत्थर उठाया और उसे बहुत दूर फेंक दिया।

यह देखकर लकड़हारे ने कहा – तुम्हारा फेंका पत्थर तो फिर धरती पर वापस आ गया है, परन्तु मेरा पत्थर कभी वापस नहीं आयेगा। लो, यह देखो।

यह कहकर लकड़हारे ने एक पत्थर उठाया। उसने उस पत्थर को चतुराई से जेब में रख लिया। उसने जेब में से चिड़िया निकली और फिर गुलेल द्वारा बड़े जोर से ऊपर की ओर छोड़ा।

चिड़िया तेजी से आकाश में उड़ गयी।

राक्षस ने समझा कि लकड़हारे ने पत्थर इतनी जोर से फेंका है कि वह ऊपर की ओर चला जा रहा है। उसे लगा कि लकड़हारा सचमुच उससे अधिक बहादुर है। परन्तु वह अभी यह बात मानना नहीं चाहता था। इसलिए उसने एक पेड़ को उखाड़कर लकड़हारे से कहा – क्या तुम इस पेड़ को उठाकर चल सकते हो?

लकड़हारा बोला – इसे? इसमें क्या रखा है? चलो आगे से तुम उठाओ और पीछे से मैं।

राक्षस ने पेड़ को तने की ओर से उठा लिया और लकड़हारे ने पीछे से पेड़ की एक टहनी पकड़ ली। पेड़ का सारा बोझ राक्षस पर पड़ रहा था।

कुछ ही दूर चलने पर वह थक गया और हांफने लगा, उसने पेड़ को धरती पर गिरा दिया और लकड़हारे की ओर देखने लगा।

हँसते हुए लकड़हारा बोला – अरे, रुक क्यों गये? क्या थक गये हो? मुझे देखो मैं तो बिलकुल भी नहीं थका।

राक्षस अपने आपको बहुत बलवान समझता था, पर लकड़हारे को देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

उसे इस बात पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि वह इस छोटे से आदमी से हार गया है। मुझे जरुर उसे पाठ पढ़ाना चाहिए। उसने सोचा और लकड़हारे से कहा – चलो भाई, मेरे साथ चलो आज तुम मेरे घर पर ही ठहरना।

लकड़हारा राक्षस के साथ चल पड़ा। घर पहुंचकर राक्षस ने लकड़हारे का बड़ा आदर सत्कार किया। फिर उसके लिए एक पलंग बिछाया और उसे आराम करने को कहा।

लकड़हारे ने सोचा कि हो न हो इसमें राक्षस की चाल है। उसने पलंग पर एक कपड़ा डाल दिया। जिससे लगे कि वह सो रहा है। फिर वह एक कोने में छिपकर खड़ा हो गया।

रात को राक्षस ने पलंग में आग लगा दी। यह सोचकर कि अब लकड़हारा जल जायेगा, वह खिलखिलाकर हंस पड़ा। और बोला – लो बच्चू, अब तुम्हें पता चलेगा कि कौन बहादुर है।

फिर वह सो गया।

अगले दिन जब राक्षस सोकर उठा तो उसने देखा कि लकड़हारा उसके पास खड़ा मुस्करा रहा है। यह देखकर वह बुरी तरह घबरा गया और भूत-भूत चिल्लाता हुआ वहां से भाग निकला।

अब लकड़हारा बहुत खुश हुआ और राक्षस के मकान में बड़े मजे से रहने लगा।

एक दिन वह पास के एक जंगल में घूम रहा था कि उसने सामने से कुछ सिपाही आते हुए देखे। उसने पूछा – तुम कौन हो?

सिपाही बोले – हम किसी ऐसे बहादुर की तलाश में हैं, जो उन दो राक्षसों को मार सके, जिन्होंने राज्यभर में उपद्रव मचा रखा है। राजा ने घोषणा करवा दी है कि जो व्यक्ति इन राक्षसों को मार डालेगा, उसके साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया जायेगा।

लकड़हारे ने तुरंत अपनी पेटी सिपाहियों को दिखाते हुए कहा – पढ़ो, इस पर क्या लिखा है?

एक चोट में सात। पढ़कर सिपाही दंग रह गये। वे बोलेआप ही जैसे बहादुर व्यक्ति की हमें तलाश थी। चलिए हमारे साथ चलिए। हम आपको अपने राजा के पास ले चलेंगे।

लकड़हारा सिपाहियों के साथ चल दिया। राजा लकड़हारे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और बोला – अगर तुम उन राक्षसों को मार डालोगे, तो राजकुमारी का विवाह तुम्हारे साथ कर दिया जायेगा और आधा राज्य भी तुम्हें दे दिया जायेगा।

राजा को नमस्कार कर वह तुरंत जंगल की ओर चल पड़ा। राक्षसों को कैसे मारा जाए, वह यही सोचता जा रहा था कि उसने अपनी चुटकी बजाकर कहा – अहा, चिंता नहीं, मार ली बाजी।

अब उसने अपनी जेब में कुछ पत्थर भर लिये और उस पेड़ पर चढ़कर बैठ गया, जिसके नीचे वे दोनों राक्षस सो रहे थे। थोड़ी देर बाद मौका देखकर उसने एक पत्थर लिया और एक राक्षस के ऊपर दे मारा।

पत्थर लगते ही वह हडबडाकर उठा और अपने साथी से बोला – क्यों तंग करते हो सोने दो ना।

थोड़ी देर बाद लकड़हारे ने फिर एक पत्थर जेब से निकाला और इस बार दूसरे राक्षस के ऊपर दे मारा।

दूसरा राक्षस हडबडाकर उठ बैठा। उसने पहले राक्षस को झंकझोर कर कहा – तंग क्यों कर रहे हो?

तंग तुम कर रहे हो या मैं? यह कहकर दूसरे राक्षस को गुस्सा आ गया।

अच्छा बताओ। वह बोला – तुमने मुझे पत्थर क्यों मारा है?

वाह, पत्थर तो तुमने मारा है और कहते हो कि पत्थर मैंने मारा है।

बातों ही बातों में बात बढ़ गयी और दोनों एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे। इस तरह लड़ते-लड़ते दोनों लहूलुहान होकर गिर पड़े और मर गये।

अब लकड़हारा पेड़ से नीचे उतरा। उसकी खुशी का ठिकाना न था। वह दौड़ता हुआ राजा के पास पहुंचा और बोला – महाराज की जय हो। मैंने उन दोनों राक्षसों को मार डाला है और कोई सेवा बताइये।

” शाबाश। ” वह बोले – तुमने वाकई बहादुरी का काम किया है। अब हम राजकुमारी का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे और अपना आधा राज्य भी तुम्हें सौंप देंगे।

फिर कुछ दिनों बाद राजा ने अपने वचन का पालन कर दिया। अब लकड़हारा राजा का दामाद बन गया। उसकी किस्मत जाग उठी थी।

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