Mundan ki kahani tenaliraam… राजा कृष्णदेव राय के दरबारियों में तेनालीराम से जलने वालों की कोई कमी नहीं थी। वे तेनालीराम को राजा से दंडित कराने के नई-नई युक्तियाँ करते, लेकिन हर बार तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के कारण मुंह की खाते और पछताते।
तेनालीराम के हाथों कई बार चोट खा चुके समस्त दरबारी यह जानते थे कि तेनालीराम को शतरंज का खेल पसंद नहीं है। उसे इस खेल से चिड़चिड़ाहट होती है, महाराज खुद शतरंज के अच्छे खिलाड़ी है।
दरबारियों ने तेनालीराम की इस कमजोरी का फायदा उठाने का निश्चय किया।
अगले ही दिन एक दरबारी ने राजा को शतरंज के खेल की याद दिलाते हुए तेनालीराम के कुशलता से शतरंज खेल लेने वाली बात बताई। पहले तो राजा को विश्वास नहीं हुआ, किन्तु उस दरबारी ने बातों की चतुराई से यह विश्वास दिला दिया कि तेनालीराम जैसा शतरंज का खिलाड़ी राज्य भर में नहीं है।
बातों के अन्त में राजा ने उस दरबारी से कहा – ठीक है, आप सभी लोग कल शाम को शतरंज का खेल देखने इकट्ठा होकर आना। मैं तेनालीराम के पास कल शाम को शतरंज खेलने की सूचना भिजवा देता हूं।
दरबारी तो यही चाहते थे। राजा कृष्णदेव राय की बुद्धि में चाभी भरकर वह अपने घर चला गया। दूसरे दिन शाम को राजा कृष्णदेव राय ने शतरंज बिछवा दी और तेनालीराम के लाख इंकार करने पर भी उसे जबरदस्ती शतरंज के खेल पर बिठा लिया।
तभी सारे दरबारी हंसकर बोल उठे – तेनालिरामजी आप तो शतरंज के माहिर खिलाड़ी हो और महाराज के साथ खेल रहे हो, ऐसा सुयोग किसी बिरले को ही मिलता है, खूब मन लगाकर खेलो।
तेनालीराम फौरन समझ गया कि इन्ही दुष्ट दरबारियों ने ही राजा को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाई है। मजबूर होकर तेलानीराम को शतरंज खेलना पड़ा और उसने अपनी चाल चल दी।
थोड़ी देर शतरंज के घोड़े-हाथी घूमते रहे और तेनालीराम बाजी हार गया। तेनालीराम के हारते ही सभी दरबारियों में एक ठहाका गूंज गया।
वे बोले – तेनालीराम, क्यों सब-कुछ जानते हुए भी मुर्खता कर रहे हो? महाराज सरीखे शतरंज के खिलाड़ी हो इस खेल में आनंद थोड़े ही आएगा, जरा जमकर खेलो भाई।
दरबारियों की यह बात राजा के मन में बैठ गई। वह समझे कि तेनालीराम मक्कारी कर रहा है। राजा को क्रोध आ गया। वह तेनालीराम से बोले – तेनालीराम, अगर तुम मन लगाकर हमारे साथ शतरंज नहीं खेलोगे, तो याद रखो हम तुम्हें सख्त सजा देंगे।
बुरे फंसे। तेनालीराम मन ही मन बुदबुदाया। फिर बोला – महाराज, वास्तव में मुझे इस खेल का सही ज्ञान नहीं है। मैं सच कह रहा हूं।
रोष से भरे राजा ने कहा – हम कुछ नहीं जानते तेनालीराम। अगर तुम दूसरी बाजी भी हार गए तो याद रहे, कल दरबार में तुम्हारे सर के बालों का मुंडन संस्कार कर दूंगा।
दूसरी बाजी शुरू हुई। तेनालीराम ने खूब जोर लगाया, अच्छी तरह अपनी बुद्धि को टटोल-टटोलकर खेला, लेकिन वाह इस बार भी हार गया।
राजा ने झुझलाकर खेल खत्म कर दिया।
तेनालीराम के चेहरे पर भी उदासी छा गई, लेकिन सारे अन्य दरबारियों के चेहरे पर प्रसन्नता नाच उठी। सब अपने-अपने घरों को चले गए। दूसरे दिन राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा। दरबार के लगते ही राजा एक नाई को बुलवाया और आज्ञा देते हुए कहा – तेनालीराम के बालों को उस्तरे से मुंड दो। नाई बेचारा, राजा का यह आदेश सुनकर सकपका गया। इतने बड़े आदमी के बाल वह कैसे मुंडे?
लेकिन राजा का आदेश टाला भी तो नहीं जा सकता है। नाई वहीं दरबार में बैठकर अपना उस्तरा तेज करने लगा।
तभी तेनालीराम बोल उठे – महाराज एक निवेदन करना चाहता हूं।
राजा ने कहा – हाँ-हाँ, जरुर करिए। बोलिए, क्या कहना चाहते हो?
महाराज, मैंने इस बालों पर पांच हजार सोने की मोहरें उधार ले रखी है। मैं जब तक यह कर्जा नहीं चुका देता, तब तक इन बालों पर मेरा कोई अधिकार नहीं है।
ठीक है, पांच हजार सोने की मोहरें लाकर तेनालीराम को दे दी जाएँ। राजन ने राज्य के कोषाधिकारी को आदेश देते हुए कहा।
कोषाधिकारी ने तुरंत राजा की आज्ञा का पालन किया और राजकोष से पांच हजार सोने की मोहरें तेनालीराम के घर भिजवा दी गई।
अब तो बात बड़ी बेतुकी हो गई। आखिर तेनालीराम को नाई के आगे बैठना ही पड़ गया।
नाई जैसे ही अपना हाथ तेनालीराम के बालों की ओर बढ़ाया तो तेनाली ने उसका हाथ रोक दिया और मन ही मन कुछ मन्त्रों को बुदबुदाने लगा।
राज ने जब आश्चर्यचकित होकर तेनालीराम की यह क्रिया देखी तो बोले – अब यह क्या ढोंग करने लगे, तेनालीराम?
महाराज, यह ढोंग नहीं है। हमारे यहाँ मुंडन संस्कार, माँ-बाप के स्वर्ग सिधारने पर किया जाता है। मेरे माँ-बाप तो दोनों ही स्वर्ग सिधार चुके हैं। अब तो आप ही मेरे माँ-बाप हैं। पालक हैं। आपका कुछ अनिष्ट न हो, इसलिए में प्रभु से प्रार्थना कर रहा हूं।
अपने अनिष्ट की बात सुनते ही धर्म-गुरु राजा कृष्णदेव राय घबरा गए, बोले – अरे! रे, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। तेनालीराम, तुम्हें अब अपने सिर के बालों का मुंडन कराने की कोई जरुरत नहीं है। मैं अपना आदेश वापस लेता हूं। राजा का इतना कहना था कि सारे दरबारियों की भावनाओं पर पानी पड़ गया।
महाराज की जय हो। कहकर तेनालीराम नाई के आगे से उठकर अपने आसन पर आकर बैठ गया।
ये भी पढ़े –
- सच्ची सुंदरता – तेनालीराम की कहानी
- एक अंधा बोलता है – कहानी
- नाम कमाया नहीं जाता – प्रेरक कहानी हिंदी में
- आधी धुप, आधी छावं – अकबर बीरबल की कहानी
- बुलबुल और शिकारी – पंचतंत्र की कहानी