Lalach ka fal, kahani.. एक बहुत ही दिन-हीन भिखारी था। वह गरीबी और भूख से बहुत परेशान रहता था। वह हमेशा ‘ लक्ष्मीमाता की जय ‘ बोलता और धन देने के लिए उनसे प्रार्थना करता रहता था।
भिखारी की रोज-रोज की प्रार्थना सुनकर लक्ष्मीमाता उस पर प्रसन्न हो गई। वे उसके सामने प्रकट होकर बोली – मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी वरदान मांग लो।
भिखारी ने कहा – माँ, यदि आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे सोने के मुहरें देने की कृपा कीजिए।
लक्ष्मीजी ने कहा – ठीक है, मैं तुम्हें सोने की मुहरें दूंगी, पर एक शर्त है। मुहरें अपनी झोली में ही लेनी होंगी और जो मुहरें जमीन पर गिरेंगी तो वे मिट्टी हो जाएगी।
भिखारी ने लक्ष्मीमाता के सामने अपनी पुरानी झोली फैला दी। लक्ष्मीजी ने कुछ मुहरें झोली में डाली और पूछा – बस?
भिखारी बोला – नहीं माता, कुछ और दीजिए।
भिखारी पर लालच का भूत सवार था। वह अधिक मुहरें मांगता रहा। लक्ष्मीमाता भी उसकी झोली में मुहरें डालती गई।
भिखारी की झोली मुहरों से भर गई। वह पुरानी तो थी ही। वह इतनी मुहरों का वजन ना सह सकी और फट गई। सारी मुहरें जमीन पर बिखर गई। तुरंत वे सभी मुहरें मिट्टी बन गई। यह देख भिखारी को बहुत पछतावा हुआ। उसने लक्ष्मीमाता से कुछ कहना चाहा, परन्तु तब तक वे अदृश्य हो चुकी थी।
सीख – लोभ मनुष्य का शत्रु है। लोभ-लालच से सब काम बिगड़ जाते हैं। इसलिए कभी लोभ नहीं करना चाहिए।