पक्षी का न्याय – पंचतंत्र की कहानी

Chidiyo ki kahani, Panchtantra ki kahani.. एक थी रानी। राजा की प्यारी थी भी बहुत सुन्दर, मगर गुस्सेल। एक दिन वह राजमहल की छत पर बैठी बाल सुखा रही थी। सोने की शीशी में चंदन का तेल और चाँदी की कंघी लिये दासियाँ खड़ी थी। इतने में पक्षियों का एक झुंड राजमहल के ऊपर से उड़ता हुआ निकला। अचानक किसी पक्षी की बिट रानी के सुनहरे बालों पर गिर गई।

बिट गिरते ही रानी के तेवर बदल गये। रानी यह भी ना देख पाई कि कौन था वो पक्षी।

वह सोचने लगी – इन पक्षियों ने मेरा अपमान किया है। इनकी यह मजाल कि मुझे बिट करके उड़ जाए, वो भी राज्य की रानी पर।

रानी आगबबुला होकर कोपभवन में चली गयी। दसियों ने उसके सिर से बिट साफ करनी चाही, परन्तु रानी ने कहा – जब तक राजा पक्षियों को दंडित नहीं करते, यह बिट बालों में ऐसे ही रहेगी।

और उसने बाल बिखेर लिये। अन्न-जल त्याग दिया। राजा को पता चला तो रेशमी रुमाल लिये कोप भवन में गये। कहा – जिस पक्षी ने अनजाने में यह कर दिया है, उसे क्या पता था तुम नीचे बैठी हो। आओ मैं साफ कर दू।

इस पर रानी ने इंकार करते हुए कहा – आखिर पक्षी भी हमारी प्रजा है। आप उनके राजा है। मैं उनकी रानी, पक्षियों की यह हिम्मत कि मेरे सर पर बिट कर दें। ऐसी बेइज्जती से तो मरना ही अच्छा है। इतना कहकर मुंह फेरकर बैठ गई।

रानी के जिद से राजा हार गये। उन्होंने जंगल में ऐलान कर दिया – कल सारे पक्षी राजमहल के सामने वाले मैदान में इकट्ठा हों। ऐलान सुनकर पक्षियों में खलबली मच गई।

सुबह होते ही पक्षियों के झुंड के झुंड राजमहल के सामने आने लगे। राजा ने पक्षियों से पूछा – क्या सब पक्षी आ गये हैं, कोई बाकी तो नहीं बचा?

मोर ने उत्तर दिया – हुजुर सब आ गये। केवल बुढ़ा कोयल नहीं आया। उसे कोई जरूरी काम आ गया था।

राज आने पूछा – क्या मेरी आज्ञा से भी जरूरी काम था उसे?

मोर ने बताया – हुजुर वह कहीं फैसला करने गया है।

बाज ने नम्रतापूर्वक पूछा – हमारा क्या अपराध है महाराज?

कड़कती आवाज में राजा ने कहा – रानी के बालों पर बिट किसने की है? उसे मौत की सजा मिलेगी।

सारे पक्षी चुप रहे।

राजा ने फिर कहा – यदि तुम्हें से कोई अपना अपराध स्वीकार नहीं करेगा, तो मैं सबको मौत के घाट उतार दूंगा।

तब भोला कबूतर आगे आया। गुटर गु करते हुए बोला – मालिक हमारा मुखिया कोयल है। आप दंड देने से पहले उससे पूछ लें।

राजा ने फिर कोयल को लाने के लिए दूत भेजा।

इस बार कोयल कूं-कूं करता आ गया। वह पक्षियों के बीचों-बीच आकर बैठ गया।

तेज आवाज में राजा बोला – क्यों रे, कोयल के बच्चे क्या जरूरी काम था तुझे?

हुजुर सात समुद्र पार मुझे न्याय करने बुलाया गया था, कोई आदर से बुलाए तो जाना पड़ता है। देरी के लिए क्षमा चाहता हूं।

अच्छा, तू भी न्याय करने लगा, जरा मैं भी सुनूं। क्या न्याय करने गया था?

कोयल ने कहा – मालिक सात समुद्र पार एक बड़ी सभा जुड़ी थी। समस्या थी कि इस दुनिया में पुरुष अधिक हैं या स्त्रियाँ? 

फिर तूने क्या न्याय किया? तू छोटा सा है। क्या न्याय करेगा?

महाराज, बड़े या छोटे शरीर से अक्ल का कोई सम्बन्ध नहीं। मैंने न्याय किया कि दुनिया में पुरुष कम और स्त्रियाँ अधिक हैं।

क्या तूने सारे स्त्री-पुरुषों की गिनती ही है? राजा ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

नहीं हुजुर, मैंने गिनती तो नहीं की, परन्तु अक्ल से जान तो सकता हूं। मेरी राय में जो पुरुष अपनी बुद्धि से काम ना लेकर स्त्री की मूर्खतापूर्ण बातें मान लेता है, उसे भी स्त्री की श्रेणी में गिनता हूं।

 कोयल बोला – वह तो आप जाने महाराज।

कोयल की बात राजा के दिल को छु गयी। बोला – तू ठीक कहता है। मैं बेकार रानी के कहने में आ गया। तुम सभी जा सकते हो।

राजा का इतना कहना था कि सब पक्षी चहचहाते हुए उड़ गये। उधर पक्षी उड़े। इधर रानी फिर कोप भवन में जाकर बैठ गई।

राजा फिर मनाने गये, तो बोली – मैं रानी बेकार ही बनी, मैं तो पक्षियों से भी गयी बीती हूं। मेरा कुछ मान होता, तो आप पक्षियों के कहने में आकर रानी आज्ञा वापस ना लेते।

राजा का हृदय पसीजा, उन्होंने दूसरे दिन पक्षियों को फिर इकट्ठा होने का आदेश दिया। सारे पक्षी इकट्ठा हो गये। परन्तु कोयल आज भी नहीं आया, तो पक्षियों पूछा – आज क्यों नहीं आया तुम्हारा मुखिया?

तोते ने कहा – वह आज भी सात समुद्र पार न्याय करने गया है। आता ही होगा महाराज।

कुछ देर बाद कोयल आ गया। हाथ जोड़कर माफ़ी मंगाते हुए बोला – क्षमा चाहता हूं। मुझे आज फिर न्याय करने जाना पड़ा।

उत्सुकतावश राजा ने पूछा – आज क्या समस्या थी?

कोयल बोला – बड़ी गंभीर समस्या थी महाराज। इस दुनिया में लोग अधिक जन्म लेते हैं या मरते अधिक है। इसी बात पर हफ्तों से बहस छिड़ी हुई थी। 

रानी भी वहीं थी। हाथ मटकाकर बोली – यह तो कोई भी बता सकता है। इस दुनिया में जन्म ही अधिक लेते हैं। यदि मरते अधिक, तो दुनिया में लोग कभी के समाप्त हो जाते।

कोयल बोला – रानीजी मैंने न्याय किया है कि लोग मरते अधिक हैं। असल में वो वचन देकर अपनी बात ना रख सके। बिना वजह अपना निर्णय बदल दें, ऐसे प्राणी मरे के समान ही है।

राजा ने सुना, तो सोच में पड़ गया। उसे लगा – यह ठीक कहता है, मैं राजा हूं मुझे सोच-समझकर फैसला करना चाहिए। बार-बार फैसला बदलना ठीक नहीं।

उसने रानी से कहा – तुम जो चाहो करो, मैं इन्हें दंड नहीं दूंगा।

रानी का चेहरा लटक गया।

राजा ने पक्षियों से कहा – मैंने नाहक निर्देश प्राणियों को दंड देना चाहा, अब मेरी आँखें खुल गई हैं। जाओ उड़ जाओ सब।

पक्षी फिर उड़ चले।

इधर पक्षी उड़े, उधर रानी फिर कोप भवन में चली गयी। इस बार रानी की मुंहलगी दासी ने एक योजना बनायीं।

योजनानुसार दासी राजा के पास गयी और बोली – महाराज, छोटी रानी गर्भवती है। अब तक आपको कोई बच्चा नहीं। रानी ने क्रोध में खाना छोड़ दिया है। ऐसा करना बच्चे के लिए घातक होगा। रानी और बच्चे की प्राण रक्षा कीजिए।

राजा डर गया। कोई भवन में गया।

तुम चलकर महल में आराम करो। राजा बोला – मैं कल सारे पक्षियों को मौत के घाट उतार दूंगा।

अगले दिन फिर राजा ने पक्षियों को बुनाले के लिए ऐलान करा दिया। पक्षी बहुत डर गये। कोयल बोला- डरो नहीं, तुम चलो, मैं पीछे से आता हूं, सब ठीक हो जायेगा।

पक्षी इकट्ठे हो गये। इस बार कोयल फिर नहीं दिखाई दिया। कुछ देर बाद जब वह आया, तो राजा ने पूछा – आज भी फैसला देने गये थे क्या?

कोयल ने भोलेपन से कहा – क्या करूँ हुजुर, कोई बुलाये तो जाना ही पड़ता है।

आज क्या उलझन थी?

बड़ी गंभीर उलझन।

जरा हम भी तो सुने।

उलझन यह थी महाराज कि दुनिया में मूर्ख अधिक हैं या बुद्धिमान, इसी को लेकर बहस छिड़ी हुई थी।

राजा ने पूछा – तूने क्या फैसला किया?

कोयल बोला – बड़ी आसान बात है। दुनिया मूर्खों से भारी पड़ी है। बुद्धिमानों की संख्या ज्यादा कैसे होगी?

राजा ने बतलाया – तू गलत कहता है। मेरे दरबार में इतने लोग हैं। सभी एक से बढ़कर एक बुद्धिमान हैं। मूर्ख एक भी नहीं। यही हालत दुनिया में है, सौ में भी एक-दो मूर्ख होते है।

कोयल बोला, गलती क्षमा हो हुजुर। आपकी बात से मैं सहमत नहीं हूं, जो मनुष्य अपनी सद्बुद्धि से काम न लेकर दूसरों की कुबुद्धि से काम करे, वह मूर्ख नहीं तो क्या है? आप एक रानी और बेटे के लिए इतने पक्षियों को प्राणदंड दे रहे हैं। ये दरबारी आपकी हाँ में हाँ मिला रहे है। इस पर भी दासी ने झूठ बोला है। रानी गर्भवती नहीं, फिर भी आप बात मान गये। आप ही बतायें, क्या यह अक्ल का काम है?

राजा चुप, उसने पूछा – तुम कैसे कहते हो कि दासी ने झूठ बोला है।

राजा ने खोज करायी तो झूठ का भंडा फुट गया। राजा की गर्दन शर्म से झुक गई।

अब राजा गंभीर होकर बोला – कोयल, तुमने मेरी आंखें खोल दी। आज से तुम आजाद हो। अब कोई पक्षी कभी किसी राजा के आधीन नहीं रहेगा। तुम आजाद हो, जहाँ चाहो जाओ।

सारे पक्षी राजा की जय-जयकार करते हुए उड़ गये।

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