कबूतर की शादी – पंचतंत्र की कहानी

Kabutar ki shadi, panchatantra ki kahani.. शालकायन नाम के एक तपस्वी थे। एक बार वह नदी में नहाकर बाहर निकले तो देखा कि बाज ने झपट्टा मारकर एक कबूतरी को अपने पंजे में दबा लिया। उन्होंने एक पत्थर उठाकर बाज को मारा। चोट खाकर बाज घायल कबूतरी उसके पंजे से छुटकर गिर गयी।

तपस्वी घायल कबूतरी को उठाकर घर ले आए। तपस्वी की कोई संतान नहीं थी। उनकी पत्नी ने कबूतरी को देखा और उसकी मरहम पट्टी की।

कबूतरी के लिए उनके मन में ममता जागने लगी।

उसने अपने पति से कहा – आप तो बहुत बड़े तपस्वी हैं, अपने तप के बल से इसे लड़की बना दीजिए। मैं इसे पाल-पोसकर बड़ा करुँगी और संतान के लिए मेरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी।

तपस्वी ने कबूतरी को एक बहुत सुन्दर लड़की बना दिया। बड़े लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण होने लगा और फिर जब वह सयानी हो गई तो तपस्वी और उनकी पत्नी को उसके विवाह की चिंता होने लगी।

जब कुछ समय बीता तो उन्होंने सोचा कि वह सुन्दर भी होना चाहिए और अच्छे गुणों वाला भी।

बहुत सोचने पर तपस्वी ने कहा – सुन्दर और गुण दोनों ही नजरों से सूर्य से अच्छा वर और कोई नहीं हो सकता। अगर हमारी बिटिया मान जाए तो सूर्य के साथ ही इसका विवाह कर दें।

हाँ, आपने सोचा तो बहुत उत्तम है।

फिर सूर्य को यहाँ बुलायें।

हाँ।

और तपस्वी ने सूर्य को अपने यहाँ बुलवाया और अपनी बेटी से पूछा – बेटी, इनसे विवाह करोगी?

नहीं। लड़की ने चेहरे से पसीना पोछते हुए कहा – पिताजी, यह तो बहुत गर्म है। इनके तो पास जाने से ही मैं पिघल जाउंगी।

सूर्य ने कहा – मुझसे अधिक गुणवान बादल है, जो मुझे भी ढक लेता है।

इतना कहकर सूर्य चले गये।

तपस्वी ने बादल को बुला भेजा और उसके बारे में अपनी बेटी की राय पूछी – बेटी, इन्हें अपना वर बनाना पसंद करोगी?

नहीं।

क्यों?

यह तो एकदम काला भूत है। लाड़ करते हुए वह लड़की बोली।

तपस्वी ने बादल से पूछा – आपसे भी बढ़कर कोई है संसार में?

बादल ने भी जान छुड़ाने के लिए कहा – पवन मुझसे भी बढ़कर है क्योंकि इसके चलने से मैं भी बिखर जाता हूँ।

पवन को बुलाकर तपस्वी ने अपनी लड़की से उसकी राय पूछी।

यह बलवान तो है, पर बड़ा चंचल है।

तपस्वी महोदय, मुझसे भी बढ़कर पर्वत है, क्योंकि वह मेरा भी रास्ता रोक लेता है। पवन ने कहा।

जब पर्वत को बुलाया गया तो लड़की ने कहा – नहीं पिताजी, वह तो एकदम पत्थर है। कठोर और निश्चल, इसके साथ भी मेरी नहीं निभेगी।

पर्वत राज, तपस्वी ने परेशान होकर पूछा – क्या संसार में कोई तुमसे भी बढ़कर है?

पर्वत ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया – महामुनि, मुझसे भी बढ़कर कबूतर है, जो मेरे जैसे तमाम ऊँचे पर्वतों को पार करके उड़ जाते हैं।

इतना कहकर पर्वत चला गया।

पर्वत के चले जाने पर तपस्वी ने कबूतरों के राजा को बुलवाया।

उसे देखते हुए अपनी बेटी से पूछा – क्या तुम्हें पसंद है?

लड़की बहुत प्रसन्न हुई और बोली – हाँ, मैं इनसे विवाह करने के लिए तैयार हूँ।

अच्छा।

जी पिताजी, अब आप मुझे भी कबूतरी बना दीजिए।

तपस्वी ने सोचा – यह ठीक ही कहती है।

और फिर।

उन्हें युवती को फिर कबूतरी बनाना पड़ा और उन्होंने कबूतरों के राजा से उसका विवाह कर दिया।

ठीक भी है, हर एक को अपने जैसा साथी की खोज रहती है।

सूर्य, बादल, पर्वत और पवन को छोड़कर कबूतरी के कबूतर से ही विवाह करना पसंद किया।

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