एक बार फ़ुरसत के समय बीरबल ने अकबर को राजा इन्द्र की स्वर्ग के कहानी सुना रहे थे। स्वर्ग की बातें सुनकर अकबर बोले – बीरबल, यह सब गप्प है, स्वर्ग जैसा कुछ होता ही नहीं।
बीरबल ने कहा – जहाँपनाह, ऐसा नहीं है। वास्तव में स्वर्ग है।
अगर वास्तव में स्वर्ग है, तो तुम हम सबको इन्द्र की सवारी के दर्शन कराओ।
बीरबल बोले – ठीक है, कभी न कभी मैं आपको इन्द्र की सवारी अवश्य दिखाऊंगा।
फिर तो अकबर उनके पीछे ही पड़ गए। जब भी उन्हें थोड़ी-सी फ़ुरसत मिलती, तभी बीरबल को इन्द्र के दरबार की बात याद दिलाते।
इससे बीरबल के लिए बड़ी आफत खड़ी हो गई। एक दिन अकबर ने नदी पर बाँध का निर्माण-कार्य शुरू करवाया। बीरबल को बाँध के काम-काज की देख-रेख की जिम्मेदारी सौंपी गई। बाँध का काम देखने के दौरान एक दिन बीरबल को इन्द्र के दरबार की बात याद आई।
पूर्णिमा की रात को बीरबल अकबर और दरबारियों को लेकर नदी पर आ गए। सभी को नदी किनारे बैठाकर उन्होंने कहा – अभी आपको यहाँ से इन्द्र की सवारी आती दिखाई देगी।
नदी का दृश्य बहुत ही सुंदर था। ठंडी हवा चल रही थी। इसके कारण नदी के पानी में तरंगे उठ रही थी। चारों ओर चांदनी फैली हुई थी। नदी के पानी में चंद्रमा का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था। अचानक बीरबल ने जोर से बोलना शुरू किया – जहाँपनाह! देखो, देखो इन्द्र की सवारी आ रही है। ऐरावत हाथी पर बैठे हुए इन्द्र कितने अच्छे लग रहे हैं। अरे! इनके आभूषण तो देखो, चेहरे पर कितना तेज है।
अकबर और उसके दरबारी आँख फाड़कर देखने लगे। बीरबल ने जैसा कहा वैसा कुछ भी उन्हें वहां दिखाई नहीं दे रहा था।
बीरबल ने फिर कहा – जहाँपनाह, देखिये, ये अप्सराएँ भी आ रही हैं। मेनका, रंभा, उर्वशी अहा! ये सब कितनी सुन्दर हैं। अरे! इनकी चाल कितनी मोहक है। लेकिन यह पुण्यशाली लोगों को ही दिखाई देगा। जो पापी होगा, उसे कुछ भी दिखाई नहीं देगा।
बीरबल लगातार कुछ न कुछ बोलते ही रहे, जिस व्यक्ति ने जीवन में चोरी की होगी, दूसरों का धन चुराया होगा, दूसरों का दिल दुखाया होगा। जो पीठ पीछे अपने मित्रों और साथियों की निंदा करते होंगे, जिनका धर्म भ्रष्ट हो चुका होगा, ऐसे लोग इस सवारी को हरगिज नहीं देख पाएंगे। क्यों साथियों, आपको तो इन्द्र की सवारी दिख रही है ना?
अब भला कौन इंकार करता? अपने आपको सच्चा और सत्यवादी सिद्ध करने के लिए सभी अपना-अपना सर हाँ में हिलाने लगे, लेकिन वास्तव में किसी को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। यह सब तो बीरबल की अक्ल का कमाल था। काफी देर इस तरह तमाशा करने के बाद बीरबल ने कहा – अब इन्द्र की सवारी लौट रही है।
कुछ देर बाद सभी दरबारी अपने-अपने घर चले गए। अकबर और बीरबल भी महल में लौट आए।
अकबर ने बीरबल से पूछा, बीरबल, क्या तुम्हें वाकई इन्द्र की सवारी दिखाई दी थी?
बीरबल ने कहा – आलमपनाह, मैं तो पापी हूँ, मुझे इन्द्र की सवारी कहाँ दिखाई देती? लेकिन नदी किनारे प्राकृतिक सुंदरता ऐसी थी कि वह स्वर्ग जैसा आभास करा रही थी। फिर आपने बांध का भी तो निर्माण करवाया है। इससे गरीबों को बहुत सुख मिला है। गरोबों के सुख में ही बादशाह का सच्चा स्वर्ग छिपा है।
बीरबल का जवाब सुनकर अकबर बहुत खुश हुए।
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