एक बार नगर में ऐसी भीषण गर्मी पड़ी कि नगर के सभी बाग-बगीचे सुख गए। नदियों और तालाबों का जल स्तर घट गया। बीरबल के घर के पिछवाड़े भी एक बड़ा बगीचा था, जो सूखता जा रहा था। बगीचे में एक कुआ था तो सही, मगर उसका पानी इतना नीचे चला गया था कि दो बाल्टी जल खीचने में ही पसीना आ जाए। बीरबल को बगीचे की चिंता सताने लगी।
एक शाम बीरबल अपने बेटे के साथ बाग का निरीक्षण कर रहे थे और सोच रहे थे कि सिंचाई के लिए मजदूर को लगाया जाए या नहीं। तभी उनकी नजर तीन-चार व्यक्तियों पर पड़ी जो सड़क के दूसरी पार एक वृक्ष के नीचे खड़े उनके मकान की ओर इशारे कर-करके एक-दूसरे से कुछ कह रहे थे।
बीरबल को समझते देर नहीं लगी कि वे लोग चोर हैं और चोरी के इरादे से उनके मकान का मुआयना कर रहे हैं। बस, उन्हें देखकर तुरंत ही उनके मस्तिष्क में बाग की सिंचाई की एक युक्ति आ गई।
उन्होंने ऊँचे आवाज में अपने बेटे से कहा, बेटा, सूखे के दिन हैं। चोर-डाकू बहुत घूम रहे हैं। गहनों और अशर्फियों का वह संदूक घर में रखना ठीक नहीं। आओ, उस संदूक को उठाकर इस कुएं में डाल दें, ताकि कोई चुरा न सके। आखिर किसे पता चलेगा कि बीरबल का खजाना इस कुएं में पड़ा है।
यह बात उन्होंने जानबूझकर इतनी जोर से कही थी कि दूर खड़े चोर भी स्पष्ट सुन लें। अपनी बात कहकर उन्होंने बेटे का हाथ पकड़ा और मकान के भीतर चले गए। मन ही मन में वह कह रहे थे, आज इन चोरों को ढंग का कुछ काम करने का मौका मिलेगा और अपने बाग की सिंचाई भी हो जाएगी।
अन्दर जाकर उन्होंने बेटे को सारी योजना बताई कि क्यों अचानक ही उन्होंने अपना खजाना कुएँ में रखने की बात इतनी जोर से कही थी। बेटा उनकी योजना सुनकर बहुत खुश हुआ और बोला, वाह पिताजी, खूब सोचा आपने, बगीचे की सिंचाई भी हो जाएगी और चोरों का व्यायाम भी।
बाप-बेटे ने मिलकर एक संदूक में कंकर-पत्थर भरे और उसे उठाकर बहार ले आए और उसे कुएं में फेंक दिया।
छपाक की तेज आवाज के साथ संदूक पानी में चला गया।
इस काम को निपटाने के बाद ऊँचे स्वर में बीरबल बोले, अब हमारा धन सुरक्षित है।
एक चोर ने अपने साथी से कहा – लोग तो व्यर्थ ही बीरबल महाराज को चतुर कहते हैं। यह तो बहुत मूर्ख है। यह तो इतना भी नहीं जानते कि दीवारों के भी कान होते हैं। आओ चलें, आज रात उनका सारा खजाना हमारे कब्जे में होगा।
रात हुई। चोर आए और अपने काम में जुट गए। वे बाल्टी भर-भर कुएं से पानी निकालते और धरती पर उड़ेल देते। उधर, बीरबल और उनका बेटा पानी को क्यारियों की ओर करने के लिए झाड़ियों में छिपकर खुरपी से नालियां बनाने लगे।
चोरों को पानी निकालते-निकालते सुबह के चार बज गए, तब कहीं जाकर संदूक का एक कोना दिखाई दिया। बस, फिर क्या था, उन्होंने काँटा डालकर संदूक बाहर खींचा और जल्दी से उसे खोला तो यह देखकर हक्के-बक्के रह गए कि उसमें पत्थर भरे थे। अब तो चोर सर पैर रखकर भागे कि मूर्ख तो बन चुके हैं, अब कहीं पकड़े न जाएँ। दूसरे दिन जब यह बात बादशाह अकबर को बताई तो वे खूब हँसे और बोले। वाह बीरबल, तुम्हारी चतुराई का भी जवाब नहीं।
बीरबल मुस्कराकर रह गए।
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