Tenaliraman ki khani.. एक बार सम्राट कृष्णदेव राय के दरबार में रामदेव नाम के किसी व्यक्ति ने फरियाद की – महाराज, मेरे मालिक ने मेरा एक हीरा हड़प लिया है। वह मुझे दिलाया जाए।
कृष्णदेव राय ने उसे पूरी बातें बताने को कहा। रामदेव बोला – महाराज, परसों सवेरे मैं और मेरा मालिक घूमने निकले। जो की धुप बहुत तेज थी, इसलिए मालिक ने मुझे छतरी तानकर चलने को कहा। हम दोनों शिव मंदिर की सड़क पर ही थे कि धूल भरी गर्म हवा चलने लगी। छतरी भी उड़-उड़ जाने लगी। हम दोनों शिव मंदिर के पिछवाड़े बने छप्पर के सायबान के नीचे जाकर खड़े हो गये।
अचानक मेरी दृष्टि लाल रंग की एक पोटली पर पड़ी। मालिक से अनुमति लेकर मैंने इस पोटली को उठा लिया। खोला तो उसमें बेर के आकार के दो हीरे बंधे पाए।
हीरों को देख दोनों की आंखें चौंधिया गयी। शिव मंदिर के स्थान पर मिलने के कारण उन हीरों पर राज्य का अधिकार था, मगर हम दोनों के मन में लालच आ गया।
मेरे मालिक ने मुझसे कहा – रामदेव, अगर तुम मुंह बंद रखो, तो इसमें से एक हीरा तुम्हें मिल सकता है।
मैं भी मालिक की गुलामी से तंग आ चुका था। सोचा – हीरे को बेचकर कुछ काम-धंधा कर लूँगा। बस, मैं राजी हो गया।
मगर हवेली में लौटकर मेरे मालिक ने मेरे हिस्से का हीरा देने में आनाकानी शुरू कर दी।
सम्राट कृष्णदेव राय ने रामदेव के मालिक को बुलाया। पूछताछ की, तो रामदेव का मालिक बोला – अन्नदाता, रामदेव एक नम्बर का मक्कार है। मैंने इसकी बात मानकर दोनों हीरे इसे राजकोष में जमा कराने के लिए दिये थे। कल मेरे पूछने पर इसने बताया कि वह वे हीरे राजकोष में जमा कर आया है। जब मैंने इसे रसीद दिखाने को कहा, तो बिगड़ पड़ा। उल्टे मेरे से ही एक हीरा माँगने लगा।
सुनकर कृष्णदेव राय ने मंत्री की ओर देखा। मंत्री ने रामदेव के मालिक से पूछा – क्या तुमने राजकोष में जम कराने के लिए इसे दोनों हीरे किसी के सामने दिये थे?
मालिक ने तीन गवाह पेश किये। उन तीनों ने एक ही स्वर में कहा कि – हाँ, रामदेव को राजकोष में जमा करने के लिए हीरे हमारे ही सामने दिये गये थे। मामला बिल्कुल साफ था।
मगर रामदेव के चेहरे से लग रहा था कि वह बेकसूर है। सम्राट उलझन में पड़ गये। फिर रामदेव, उसके मालिक और तीनों गवाहों की वहीँ बैठने का आदेश दे, मंत्रणा कक्ष में आए। दरबारियों की राय ली। मंत्री, पुरोहित और सेनापति का कहना था – रामदेव अपराधी है। उसे कठोर दंड दिया जाए। तेनालीराम चुप था। कृष्णदेव राय ने उसे भी अपनी राय देने को कहा।
तेनालीराम बोला – आप सब पर्दे के पीछे बैठ जाएँ, तो राय दूँ। तेनालीराम की इस बात पर मंत्री, सेनापति और पुरोहित दांत पिसने लगे, किन्तु यह देखकर कि सम्राट चुपचाप पर्दे के पीछे चले गये हैं, उन्हें भी पर्दे के पीछे जाना पड़ा।
एकांत पाकर तेनालीराम ने पहले गवाह को बुलाकर पूछा – रामदेव को उसके मालिक ने हीरे तुम्हारे सामने दिये थे?
पहला गवाह बोला – हाँ।
वे हीरे कैसे थे, चित्र बनाकर समझाओ। तेनालीराम ने गवाह के आगे कागज और कलम रख दिया। गवाह सकपका गया। बोला – हीरे, लाल रंग की थैली में बंद थे। मैंने नहीं देखा।
अब तेनालीराम ने दूसरे गवाह को अन्दर बुलाकर उससे भी हीरों का चित्र बनाने को कहा।
उस गवाह ने कागज के तारों जैसी दो उल्टी-सीधी आकृतियाँ बना दी। बोला – हीरे कागज में लिपटे थे।
अब तीसरे गवाह की बारी आयी। चित्र बनाने को कहने पर वह बोला – श्रीमान, दोनों हीरे भोजपत्र में बंधे थे। मैं देखता कैसे?
सारे गवाहों ने एक-दूसरे के सामने उत्तर दिये थे। उनके उत्तर सुनकर सम्राट कृष्णदेव राय भी पर्दे से बाहर निकाल आए। उन्हें देखते ही तीनों गवाहों का मनोबल टूट गया।
सम्राट ने क्रोध से उनकी ओर देखा, तो वे हाथ जोड़कर बोले – महाराज, हम भी रामदेव की तरह इस मालिक के नौकर हैं। अगर झूठी गवाही नहीं देते, तो नौकरी चली जाती।
अब सब कुछ साफ था। सम्राट के आदेश पर रामदेव के मालिक के घर की तलाशी ली गयी, तो दोनों हीरे मिल गये।
हीरे राजकोष में जमा कर लिये गये। दंड स्वरूप रामदेव के मालिक से दो हीरों के मूल के बराबर धन रामदेव को दिलवाया गया। धन और न्याय पाकर वह खुश हो गया। उचित न्याय के लिए सम्राट की नजर में तेनालीराम का महत्व बढ़ गया।
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