Chalaak lomadi, panchtantra ki kahani.. एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी। वह अक्सर ही जंगल में दूसरे जानवरों को अपनी चतुराई से छका देती थी। जंगल के राजा शेर से शिकायत होती, पर लोमड़ी को सजा न मिलती। शेर राजा उसकी चतुराई भरी बातों पर मुग्ध थे।
लोमड़ी कुछ ऐसे ढंग से बात करेगी, शेर को लगता कि गलती शिकायत करने वाले की है, बेचारी लोमड़ी की नहीं, बस वास छूट जाती।
और लोमड़ी की चालाकी से जंगल के बहुत से जानवर दुखी थे। सभी को लोमड़ी के हाथों मात खानी पड़ी थी। आखिर जानवरों ने तय किया लोमड़ी को शेर की नजरों से गिराने के लिए सर्यन्त्र रचा जाए।
फिर क्या था? हर जानवर मौका पाते ही शेर से लोमड़ी की शिकायत करने लगता। उनमें रीछ, जंगली बिल्ली और भेड़िया सबसे आगे थे। शेर भी लोमड़ी की शिकायत सुनकर परेशान हो गया।
उसे लगने लगा – जरुर लोमड़ी शैतान है। वरना इतने जानवर उसकी शिकायत न करते।
एक दिन उसने भेड़िया से कहा – शैतान लोमड़ी को बुलाकर लाओ। मैं उसे कड़ी सजा दूंगा।
भेड़िया मन ही मन खुश होता हुआ लोमड़ी के पास पहुंचा।
उसने कहा – शेर राजा तुमसे बहुत नाराज हैं। उन्होंने तुम्हारे लिए फांसी का फंदा तैयार करा है। जान बचाना चाहती हो तो भाग जाओ।
फांसी की बात सुनकर लोमड़ी घबरा गई। वह एक गुफा में छिप गयी। भेड़िया ने शेर के पास जाकर कह दिया – सरकार लोमड़ी न आने से मना कर दिया।
यह सुनकर शेर गुस्से से लाल-पिला हो उठा। अगली बार उसने रीछ को भेजा – जैसे भी हो लोमड़ी को पकड़कर लाओ।
रीछ ने भी लोमड़ी को भाग जाने की सलाह दी और कहा – अगर गई, तो तुम्हें फांसी पर लटका देंगे।
लोमड़ी उसके चक्कर में आ गयी। इससे शेर का गुस्सा बढ़ता चला गया।
अब जंगली बिल्ली को भेजा गया। उसने भी लोमड़ी को दूर कहीं भाग जाने की सलाह दी। इसके बाद शेर ने जंगल में मुनादी करवा दी – लोमड़ी को पकड़कर लाने वाले को भारी इनाम दिया जायेगा।
अब लोमड़ी का बचना मुश्किल था। कई जानवर उसे घेरकर शेर के पास ले गए। शेर का चेहरा देखते ही लोमड़ी समझ गई, आज खैर नहीं। उसने देखा, रीछ, भेड़िया और जंगली बिल्ली एक तरफ खड़े हंस रहे हैं।
शेर जोर से दहाड़ा – तुम्हारी इतनी हिम्मत। हमारे बार-बार बुलाने पर भी ध्यान नहीं दिया, मना करवा दिया। हम तुम्हें फांसी पर लटकवा सकते हैं।
लोमड़ी समझ गई, यह किसी की शरारत है, पर इस वक्त कुछ कह नहीं सकती थी। आँखों में आंसू भर लायी। बोली – हुजुर, मैं तो चार दिन से बीमार थी। एक गुफा में भूखी-प्यासी पड़ी थी। मुझे आपका संदेश नहीं मिला, मैं सौगंध खा कर कहती हूं।
लोमड़ी को रोता देखकर शेर का गुस्सा थोड़ा कम हुआ।
उसने कहा – मैं आज तुम्हें फंसी देने वाला था, पर अब दो दिन तक पेड़ पर उल्टा लटकाकर रखूँगा। आगे फिर कभी ऐसा मत करना।
और फिर सब जानवरों के सामने लोमड़ी को पेड़ से उल्टा लटका दिया गया। सब उसकी खिल्ली उड़ाने लगे, लेकिन लोमड़ी कहती रही – महाराज की जय हो, महाराज अमर रहें।
इस बात पर शेर पर अच्छा असर पड़ा। वह सोचने लगा – कुछ भी हो, लोमड़ी स्वामिभक्त है।
पंचतंत्र की कहानी
दो दिन, दो रात लोमड़ी भूखी-प्यासी पेड़ से लटकी रही। जब उसे पेड़ से नीचे उतारा गया, तो उसकी हालत बहुत ही खराब थी। पर वह समझ गयी थी कि जब उसे क्या करना है।
इसके दो दिन बाद रीछ जंगल में जा रहा था। उसने लोमड़ी को एक पेड़ के नीचे बैठे देखा। उसके आगे एक बर्तन में शहद रखा था। लोमड़ी ने कहा – रीछ भैया, राम-राम। लो शहद खाओ।
शहद को देखते ही रीछ के मुंह में पानी आ गया। शहद का बहुत शौक था उसे। उसने आव देखा न ताव, झट शहद चाटने लगा, लेकिन वह केवल शहद नहीं था। लोमड़ी ने शहद में एक पेड़ की पत्तियों का रस मिला दिया था। उससे बहुत तेज खुजली होती थी।
शहद चाटते ही रीछ के मुंह के अंदर और बाहर खुजली होने लगी। वह पागलों की तरह बाल नोंचता हुआ इधर-उधर दौड़ने लगा। तब लोमड़ी भागकर एक झाड़ी में छिप गयी।
वह उसकी परेशानी पर हंसने लगी। रीछ ने जाकर शेर से फिर लोमड़ी की शिकायत कर दी।
अगले दिन भेड़िया जंगल में जा रहा था, तो उसने लोमड़ी को देखा। लोमड़ी के हाथ में एक शीशा था। वह बार-बार शीशे में मुंह देख रही थी। भेड़िया उत्सुक होकर रुक गया। उसने पूछा – लोमड़ी बहन, क्या देख रही हो शीशे में?
आओ भेड़िया भाई। लोमड़ी ने कहा – क्या बताऊँ मेरे चेहरे पर कुछ दिन से दाग हो गये थे। मैं बहुत परेशान थी, आज मैंने दवा मिले जल से मुंह धोया है, तो चमत्कार हो गया। सारे दाग मिट गये और रंग भी गोरा हो गया।
भेड़िया ने देखा। सचमुच लोमड़ी का चेहरा पहले से अधिक गोरा नजर आ रहा था, उसे यह पता नहीं चला, लोमड़ी ने चेहरे पर खड़िया मल रखी थी।
भेड़िया ने कुछ सोचा। फिर बोला – अगर दवाई वाला पानी होता तो मैं भी मुंह धोता। मेरे चेहरे पर भी कर दाग हैं।
मैं अभी लाती हूं। तब तक तुम आँखें बंद करके लेट जाओ। वह दवा आँखों में नही जानी चाहिए, उससे नुकसान हो सकता है।
भेड़िया एक पेड़ के नीचे आँखें बंद करके लेट गया। लोमड़ी ने एक बरतन में खूब गर्म पानी भर लिया। फिर बरतन को भेड़िया के मुंह पर फेककर भाग गया।
गरम पानी से भेड़िया का चेहरा झुलस गया। वह दर्द से चीख उठा। गलियां देता हुआ लोमड़ी के पीछे दौड़ा, लेकिन तब तक लोमड़ी रफ्फूचक्कर हो गयी हो गयी थी।
इसके थोड़ी देर बाद लोमड़ी जंगली बिल्ली के घर के सामने से गुजरी। लोमड़ी जोर-जोर से कह रही थी – बाप रे, कितनी चूहे हो गये हैं खलिहान में। कोई बिल्ली हो तो खूब दावत उड़ाए।
जंगली बिल्ली ने लोमड़ी को आवाज सुनी, तो झट बाहर निकली। उसने कहा – लोमड़ी बहन क्या बात है? किन चूहों की बात कर रही हो तुम?
लोमड़ी ने कहा – पास के गाँव में जमींदार का खलिहान है। वहां चूहे बहुत उत्पात मचा रहे हैं। बेचारा बहुत परेशान है। उसने मुझसे मदद करने को कहा, लेकिन मैं तो चूहों का शिकार करती नहीं।
बिल्ली ने कहा – पर मैं तो चूहों को ठिकाने लगा सकती हूं। कहां है व खलिहान, तुम मुझे वहां पर ले चलो।
हाँ-हाँ क्यों नहीं, आओ चलो इतना कहकर लोमड़ी बिल्ली को गाँव के एक खलिहान के पास ले गयी। गोदाम की दीवार में एक सुराख था। लोमड़ी ने कहा – तुम इधर से अन्दर चली जाओ। मजे से चूहों की दावत उड़ाओ। बिल्ली लोमड़ी के झांसे में आ गयी।
किसान ने सुराख के पीछे एक फंदा लगा रखा था। बिल्ली जैसे ही अन्दर घुसी, फंदे में फंस गयी।
किसान ताक में था ही। उसने डंडे से खूब पिटा। बिल्ली को चूहों के बदले डंडे मिले। बड़ी मुश्किल से छुटकर भागी बेचारी उसका सारा बदन लहूलुहान हो गया था।
शेर के पास भेड़िया, रीछ और बिल्ली लोमड़ी की शिकायत लेकर पहुंचे। खुजली के मारे रीछ का बुरा हाल था। भेड़िये के चेहरे पर फफोले पड़े हुए थे और बिल्ली बहुत घायल थी।
शेर ने शिकायत सुनी। फिर लोमड़ी को बुलावा भेजा। इस बार लोमड़ी ने आने में देर नहीं की। तुरंत चली आई। कहा – महाराज की जय हो।
यह करतूत इसी की है। तीनों ने एक आवाज में कहा।
आज नहीं छोडूंगा शैतान लोमड़ी तुझे। शेर गरजा।
लोमड़ी शेर के पैरो में लोट गयी। कृपा निधान मेरी कोई गलती नहीं है। ये तीनों अपनी ही बेवकूफी के शिकार बने। मुझे पता ही नहीं था कि शहद खुजली पैदा करने वाला है। मैं तो शहद खाती नहीं और भेड़िया ने बिना यह देखे कि पानी गरम है, अपने मुंह पर डाल लिया। इससे यह जल गया। रही बिल्ली की बात। महाराज, अगर ये बेवकूफ हैं, तो मैं क्या कर सकती हूं?
लोमड़ी की बात सुनकर शेर खूब हंसा। उसने रीछ, भेड़िये और बिल्ली से कहा – तुम निन्दा करने वाले ही नहीं, मूर्ख भी हो। मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकता। जाओ चले जाओ। अब कभी मत आना मेरे पास। यह कहकर वह लोमड़ी से बोला – लोमड़ी तू बहुत शैतान है और चालाक भी, लेकिन इन बेवकूफों से फिर भी अच्छी है। अगर तू आगे से किसी को परेशान न करने का वादा करे, तो मैं तुझे माफ कर दूंगा।
लोमड़ी राजा की बात मान गई और फिर सभी लौट पड़े। लोमड़ी हंस रही थी और वे तीनों खिसियाती सूरत लिये लौट रहे थे।