Me chor to police, panchtantra ki khani.. एक बार कृष्णदेव राय कश्मीर की यात्रा पर गये। वहां उन्होंने सुनहरे रंग के फूल वाला एक पौधा देखा वह पौधा सम्राट को इतना पसंद आया कि लौटने पर एक पौधा अपने महल के बगीचे के लिए भी ले आए।
विजयनगर आकर उन्होंने माली को बुलवाया। सुनहरे फूल वाला पौधा सौंपते हुए बोला – इसे बगीचे में हमारे शयनकक्ष की खिड़की के ठीक सामने रोंप दो। ध्यान रहे, पौधे को किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचने पाए।
माली ने अत्यंत सावधानी के साथ वह पौधा निश्चित स्थान पर रोंप दिया। नियमपूर्वक उसे सींचता रहा। देखरेख करता रहा। कृष्णदेव राय भी सुबह शाम खिड़की से उस पौधे को देखते। न जाने क्यों, उनको वह पौधा शुभ लगता था। जिस दिन उसी देखे बिना दरबार में चले जाते अनमने से बने रहते।
एक दिन गजब हो गया। कृष्णदेव राय सोकर उठे। सुनहरे फूल वाला पौधा देखने के लिए उन्होंने खिड़की खोली, तो परेशान हो गये। पौधा अपने स्थान पर था ही नहीं।
क्रोध में उन्होंने माली को बुलाया। डर से थर-थर कांपता माली आया। बातों से पता चला कि वह पौधा माली की बकरी खा गई।
सम्राट ने आवेश में आ, माली को तुरंत प्राणदंड की आज्ञा दे दी।
सैनिक माली को पकड़ के ले गये।
माली की पत्नी ने यह सुना तो रोते-रोते राजा के पास गयी, किन्तु राजा क्रोध में थे। मिलने तक से इंकार कर दिया।
किसी ने माली की पत्नी को तेनालीराम के पास जाने की सलाह दी – वही कुछ कर सकता है।
माली की पत्नी रोती- कलपती तेनालीराम के पास पहुंची। सारी बात बताकर अपने पति के प्राणों की भीख मांगी। तेनालीराम ने उसे सांत्वना दी। फिर कुछ समझा-बुझाकर घर भेज दिया।
अगले दिन एक और हंगामा हुआ। माली की पत्नी, बकरी को मजबूत रस्सी से बाँध नगर के हर चोराहे पर जाती, खूंटा गाड़ बकरी को उससे बांधती, फिर हाथ में डंडा ले जोर-जोर से उसे पीटने लगती। बकरी मिमियाती, इधर-उधर कूदती-फांदती मगर माली की पत्नी का डंडा न रुकता।
विजयनगर में पशुओं के प्रति निर्दयी व्यवहार पर प्रतिबंध था। लोग माली की पत्नी को ऐसा न करने को कहते, मगर वह किसी की न सुनती।
कुछ दयावान नागरिकों ने बकरी पर अत्याचार की सूचना सिपाहियों को दी। सिपाही आए और माली की पत्नी को बकरी सहित पकड़कर ले गयी। उसी दिन यह मामला कृष्णदेव के दरबार में पेश हुआ। सम्राट ने माली की पत्नी से पूछा कि वह निरीह बकरी को इतनी निर्दयता से क्यों पीट रही थी?
माली की पत्नी बोली – अन्नदाता, यह बकरी निरीह नहीं है। इसी के कारण मेरा घर बरबाद हो रहा है। इसी के कारण में विधवा बनने जा रही हूँ।
बात सम्राट कृष्णदेव राय की समझ में नहीं आयी। वह बोले – जो कहना है, स्पष्ट कहो।
माली की पत्नी हाथ जोड़कर बोली – अन्नदाता, क्षमा कीजियेगा। इसी बकरी ने आपका सुनहरा फूल वाला पौधा खाया है। अपराध इसने किया है, मगर इसे सजा नहीं मिली। इसके अपराध की सजा मिली तो मेरे परिवार को। आप ही बताइये, आप जैसे न्यायप्रिय राजा के होते एक अपराधी बिना दंड पाए घूमती रहे और दंड मिले उसको, जिसने अपराध किया ही न हो। यह कहाँ का न्याय है?
सम्राट के चेहरे पर क्षण भर के लिए आश्चर्य की रेखाएं फैली, फिर जैसे वह सब कुछ समझ गये। माली को क्षमा कर उन्होंने मालिन से पूछताछ की, तो पता चला कि यह सब तेनालीराम की योजना थी।
कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को गलत निर्णय पर उन्हें समय से चेताये जाने के उपलक्ष्य में भरपूर पुरस्कार दिया।
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