अकबर बादशाह के राज्य में एक बहुत ही कंजूस व्यक्ति रहता था। काफी मेहनत करने के बाद भी वह बहुत कम भोजन करता था और धन को जमा करता था। इस तरह उसके पास बहुत से जवाहरात इकट्ठा हो गए थे। उसका रहन-सहन ऐसा था कि लोगों का सहसा विश्वास ही नहीं होता था कि उसके पास फूटी कौड़ी भी होगी। उसका घर घास की झोपड़ी का बना था, जिसमें एक टूटी-फूटी संदूक जो की बाबा आदम के ज़माने की थी। उसी में वह अपने जवाहरातों को छिपाकर रखता था।
एक दिन अचानक उस घास की झोपड़ी में आग लग गई। यह देखकर कंजूस दहाड़े मार-मार कर रोने लगा। उसका शोर सुनकर उसके पड़ोसी के लोग जमा हो गए और आग बुझाने में मदद करने लगे। लेकिन आग बुझने की अपेक्षा और उग्र रूप धारण करती रही। आग की लपटों को देखकर कंजूस ने और अधिक जोर से चिल्ला-चिल्लाकर रोना शुरू कर दिया। तभी पास खड़ा एक सुनार उसको डांटकर बोला – एक घास की झोपड़ी जलने पर इतना चिल्ला रहा है ?
कंजूस अपनी छाती फोड़ते हुए बोला – भाई, तुम झोपड़ी जलते हुए देख रहे हो ? लेकिन मैं तो अपने जवाहरातों को जलते देख रहा हूं।
यह सुनकर सुनार बोला – जवाहरात, कहां हैं ?
कंजूस ने उंगली के इशारे से उस जगह की तरफ इशारा किया जहाँ वह सन्दुक रखी हुई थी। सुनार के मन में लालच आ गया। वह कंजूस से बोला – यदि मैं जवाहरातों को बाहर निकाल लाऊं तो जो मैं चाहूँगा तुमको देकर बाकी खुद रख लूँगा। सब धन जाते देख आधी बांट कर ख्याल करके कंजूस ने सुनार को इजाजद दे दी।
सुनार अपनी जान जोखिम में डालकर लालचवश दहकती आग में कूद पड़ा और सन्दुक निकलकर बाहर ले आया। जब आग बुझ गई तो सुनार के कंजूस को खाली सन्दुक देकर सरे जवाहरात खुद ले लिए। इस प्रकार के व्यवहार का कंजूस ने विरोध किया तो सुनार बोला। तुमने पहले ही मंजूर कर लिया था कि मैं जो कुछ चाहूँगा, वही तुम्हें दूंगा।
भाई, आपने अपनी जान पर खेलकर मुझ पर ऐसा उपकार किया है। इसलिए आप माल ले लें, बाकि आधा मुझे मंजूर है – कंजूस ने हाथ जोड़कर कहा।
सुनार तेज स्वर में बोला – मेरे-तेरे बीच तो पहले ही यह शर्त हो चुकी थी कि जो मैं चाहूँगा, तुझे दे दूंगा। अब जालसाजी करने से तेरा काम नहीं चलेगा।
सुनार और कंजूस में बहस बढ़ती ही चली गई। कंजूस ने आधे जवाहरात पाने की बहुत कोशिश की, किन्तु असफल रहा। अन्त में बादशाह के यहाँ शिकायत की। बादशाह ने मामला पेचीदा समझकर बीरबल को सौंप दिया।
बीरबल ने सुनार से पूछा – तुम दोनों के बीच क्या शर्त तय हुई थी?
अकबर बीरबल की कहानी
सुनार ने कहा – हम दोनों के बीच यह शर्त तय हुई थी कि यदि उस धधकती आग में घुसकर मैं जवाहरातों वाली सन्दुक को निकलकर लाऊं तो अपनी पसंद का इसको दूंगा, बाकी खुद ले लूँगा।
बीरबल ने कंजूस से पूछा – जो बात सुनार कहता है, क्या सच है? कंजूस ने स्वीकार किया। तब बीरबल उससे बोले – फिर क्यों नहीं सुनार का फैसला मान लेते। जब शर्त तय हो चुकी थी तो कुछ वो देता है, ले लो।
कंजूस के कहा – वह तो मुझे केवल सन्दुक देकर सब जवाहरात खुद ले रहा है।
बीरबल ने सुनार से पूछा – तुम्हें कौन-सी वस्तु पसंद है?
सुनार बोला – जवाहरात
यह सुनकर बीरबल बोले – फिर तुमने इतनी बात क्यों बढाई? जवाहरात उसे वापस दे दो और सन्दुक तुम ले लो।
सुनार सन्न सा रह गया।
बीरबल बोले – तुम्ही ने अपनी शर्त बताया है कि तुम जो पसंद करोगे, वह उसे दे दोगे तथा बाकि खुद रख लोगे, तो जवाहरात इसे दे दो। बाकि सन्दुक तुम खुद ले लो।
सुनार कुछ नहीं बोल सका। वह जनता था कि यदि बीरबल के न्याय स्वीकार नहीं करेगा तो उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी। ज्यादा लालच का यही नतीजा होता है। कंजूस को उसके जवाहरात मिल गए।