एक जंगल था। उसमें एक बहुत बड़ा तालाब था। जंगल के सभी जानवर इसी तालाब में पानी पिने आते थे। तालाब के किनारे एक पुराना पेड़ था। उस पर अकलू नाम का बन्दर रहता था। वह बहुत अकलमंद था। इसलिए सब लोग उसे अकलू नाम से पुकारते थे।
एक दिन दोपहर के समय एक भैंस तालाब में घुसकर नहाने लगी। बड़ी देर बाद जब वो तालाब से निकली, तब उसकी देह में मिट्टी और खिचड़ लगा हुआ था। अकलू ने उसका यह रूप देखा, तो बड़ी जोर से ‘ खी खी ‘ करके हंसने लगा।
भैंस तो आखिर भैंस ही ठहरी। वह गुस्से से बोली – तुझे शर्म नहीं आती, अपने से बड़ों पर हँसते हुए?
अकलू और जोर से हंसा और बोला – अरे, तो ऐसा भी क्या नहाना कि देह में कीचड़-मिट्टी लगी रहे। इससे अच्छा तो यह था कि नहाने न जाती। तूने तालाब का पानी भी गंदा कर दिया और खुद भी वैसी ही है।
भैंस ने धमकाया – जा, जा! बड़ा आया, जरा नीचे तो आ, तो अभी मजा चखा दूँ।
अकलू ने ताने से कहा – अरे जा अपना काम कर, चली है बड़ी बनने। इतना बड़ा डील-डौल तो है, पर अकल रत्ती भर भी नहीं पाई। “
भैंस और अकलू कि गर्मागर्म बातें जंगल के अन्य जानवरों के कानों तक पहुंची। उन्होंने तय किया कि किसी न किसी तरह इस झगड़े को निपटाना ही चाहिए।
शाम हुई। जंगल के सभी जानवर तालाब के किनारे इकट्ठा हुए। सबकी राय से ये तय हुआ कि जो कोई इस तालाब को बीच से पार कर जायेगा वही बड़ा है। इस प्रतियोगिता के लिए निर्णायक शेर बना और रेफ्री गीदड़।
जंगल के सभी जानवर यह मजेदार तमाशा देखने के लिए उत्सुक थे। वे सब तालाब के उस पार जाकर जम गए।
इस पार अकलू, भैंस और गीदड़ रह गए। अकलू बहुत परेशान था। उसे तेरना तो आता ही न था। आखिर इतना बड़ा तालाब पार कैसे किया जाएगा।
जब सारी तैयारी पूरी हो गई, तब गीदड़ ने दोनों को सावधान किया। उसके “हुआ हुआ” करने पर दोनों को तालाब में तेरना शुरु कर देना था। अकलू कि परेशानी बढ़ गई। दिल धड़कने लगा। घबराहट के कारण कुछ सूझता ही न था। उसे डर था कि कहीं आज वह जंगल के सभी जानवरों के सामने मूर्ख न साबित हो जाए।
अचानक गीदड़ ने “हुआ हुआ” की पुकार लगाई। भैंस तैयार खड़ी थी। वह तालाब की ओर चल पड़ी। अब अकलू ने भी थोड़ी हिम्मत बाँधी और अकल लगाई। अचानक एक तरकीब समझ में आ गई।
अकलू ख़ुशी से उछल पड़ा। उसने इस डाली से उस डाली दो-चार छलांगे लगाई और तालाब की तरफ झुकी हुई डाल पर जा पहुंचा। भैंस अभी थोड़ी दूर गई थी। बस अकलू वहीं से कूद पड़ा और धम्म से भैंस कि पीठ पर आकर बैठ गया। भैंस ने उसे गिराने के लिए एक-दो बार अपनी पूंछ चलाई, पर अकलू ने उसे भी पकड़ लिया।
जंगल के जानवर अकलू की चतुराई देखकर चकित रह गए। वे अब यह देखने के लिए उत्सुक हो गए पहले कौन पहुँचता है।
भैंस किसी तरह धीरे-धीरे किनारे पहुंची। अभी जमीन थोड़ी दूर थी कि अकलू फिर जोर से उछला और किनारे पर जाकर खड़ा हो गया। सारे जानवर अकलू की अकलमंदी और जीत पर ख़ुशी से चिल्ला उठे।
भैंस उधर बेचारी धोरे-धीरे पानी से बहार निकली। तभी शेर ने फैसला किया कि अकलू बड़ा है, भैंस नहीं और उस दिन से लोग कहने लगे कि आखिर अकल बड़ी या भैंस।।।
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