Akal badi ya bais.. bacho ki kahani.. kids story in Hindi.. किसी समय मंदर नामक एक पर्वत की गुफा में दुर्दात नाम का एक सिंह रहता था। वह हर समय मनमाने ढंग से जानवरों का शिकार करता था। इसी वजह से उस जंगल के सभी प्राणी दुखी और भयभीत रहते थे। उन्हें पता ही न होता कि कब दुर्दात सिंह आकर उनकी गर्दन दबोच ले।
तब सभी जानवरों ने आपस में मिलकर एक योजना बनाई। उन जानवरों का एक प्रतिनिधि-मंडल सिंह के पास गया और उससे निवेदन किया – महाराज, आप इस जंगल के राजा है, आपके बिना हमारा जीवन असुरक्षित है। और हम सब तो आपके भोजन है, फिर भी आपके भय के कारण नगरवासी हमारा शिकार करने के लिए जंगल में घुसने का साहस नहीं करते। लेकिन महाराज, आज हम आपसे एक विनती करने आए हैं।
सिंह बोला – कहो, क्या कहना चाहते हो?
तभी जानवरों के उस प्रतिनिधि मंडल का एक सदस्य बोला, महाराज, आपके दिन-भर के भोजन के लिए एक ही जानवर काफी है लेकिन आप दिन में कई जानवरों का शिकार कर देते हैं। हमारा निवेदन है कि आप ऐसा न किया करें।
उसी सदस्य ने आगे बढ़कर कहा, आप अपनी गुफा में ही रहा कीजिए। हममें से एक जानवर हररोज आपके भोजन के लिए खुद ही आपके पास पहुँचता रहेगा। इस प्रकार आपको भी भोजन के लिए प्रयास न करना पड़ेगा और हम लोगों के सिर पर लटकती मृत्युरूपी तलवार का भी भय किसी सीमा तक दूर हो जाएगा।
सिंह इसके लिए तैयार हो गया, लेकिन उसने शर्त रख दी कि उसे भोजन पहुँचने में देर नहीं होना चाहिए, नहीं तो वह सारे जानवरों का एक साथ ही शिकार कर डालेगा।
तब से उस जंगल के जानवर में से नित्य एक जानवर सिंह का आहार बनने के लिए उसके पास जाने लगा।
इसी क्रम में एक बार एक खरगोश की भी बारी आ गई। खरगोश मन ही मन सोचने लगा कि जीवित रहने की आशा से ही किसी से विनती की जाती है। जब मेरी मृत्यु निश्चित ही है, तब मैं सिंह को मनाने और उसे प्रसन्न रखने की चेष्टा ही क्यों करूँ?
यही सोचकर वह धीरे-धीरे चलने लगा। इसका नतीजा यह निकाला कि सिंह के पास पहुँचने में उसे देर हो गई।
लेकिन सोचने का खरगोश को लाभ भी पहुंचा। वह जब सिंह के पास पहुंचा, तब एक उपाय उसे सूझ चुका था।
सिंह भूख के मारे तड़प रहा था। उसने जब एक छोटे से खरगोश को आहार के रूप में अपने पास आते देखा तो गरजकर बोला – अरे एक तो इतना छोटा खरगोश और वह भी इतनी देर से। बता इतनी देर तूने क्यों लगाई?
खरगोश बनावटी भय से कांपते हुए बोला – महाराज, इसमें मेरे कोई दोष नहीं है।
तो फिर मेरा है? सिंह दहाड़ा।
नहीं महाराज, मैं यह कैसे कह सकता हूं। हम दो खरगोश थे। रास्ते में अगर वह दूसरा सिंह न मिल गया होता तो हम समय पर आपके पास पहुँच जाते।
दूसरा सिंह? सिंह ने चौकते हुए पूछा।
हाँ महाराज, रास्ते में उसी सिंह ने हम दोनों को पकड़ लिया और जैसे ही उसने मुझे मारना चाहा, मैंने उससे कहा कि अगर तुमने मुझे मार दिया तो हमारे महाराज तुम पर नाराज होकर तुम्हारे प्राण हर लेंगे।
इस पर सिंह बोला कि कौन है तुम्हारा महाराज, तो मैंने आपका नाम बता दिया। यह भी बता दिया कि व्यवस्था के अनुसार हम दोनों आपका आहार बनने के लिए आपके पास जा रहे हैं।
लेकिन महाराज, उस सिंह ने मेरी बात पर विश्वास न किया और बोला कि तुम अपनी जान बचाने के लिए झूठ बोल रहे हो। तब मैंने कहा कि अगर हमारी बात तुम झूठ समझते हो तो मेरे साथी को अपने पास बंधक के तौर पर रख लो। मैं अपने महाराज को लेकर तुम्हारे पास आता हूं। तब तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा कि हमारे महाराज में कितना बल है। वे आते ही तुम्हारी गर्दन मरोरकर रख देंगे।
यह सुनकर सिंह बेहद क्रोधित हो उठा। वह बोला – चलो, मुझे तुरंत दिखाओ कि वह दुष्ट कहां है?
खरगोश ने रास्ते में एक गहरा कुआँ पहले ही देख लिया था। वह सिंह को उस कुएँ के पास ले गया, फिर बोला, महाराज, वह यहीं बैठा था, किन्तु अब लगता है आपको दूर से आता देख कर भय के कारण अपनी मांद में छिप गया है।
कहा है उसकी मांद? सिंह दहाड़ा, मैं उसकी मांद से खीचकर ही मारूंगा।
चालाक खरगोश कुएँ की जगत पर खड़ा हो गया और नीचे झांककर बोला, वह देखिए महाराज, वह बैठा है अंदर। उसके साथ मेरा साथी भी है।
सिंह ने कुएँ में जो झाँका तो उसे अपना और खरगोश का प्रतिबिंब कुएँ के जल में दिखाई पड़ा। वह समझा कि अंदर जरुर ही मेरा दुश्मन बैठा है। तब उसने एक जोर की दहाड़ मारी। जिसकी वजह से कुएँ में उसकी गर्जन जुन्जने लगी और बाहर आई। अब उस सिंह से बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया। वह कुएँ में कूद पड़ा और जब तक उसका भ्रम टूटा, वह छटपटाकर मर गया। इस प्रकार अपनी ही मुर्खता से सिंह की मृत्यु हो गई। खरगोश ने लौटकर जब जंगल के अन्य जीवों को यह बात बताई तो सब बहुत प्रसन्न हुए।
तो दोस्तों इस कहानी से हमे क्या शिक्षा मिली – जिसके पास बुद्धि होती है, उसी के पास ताकत भी होती है।